लेखक की कलम से

वक्त …

यूँही सुबह सुबह आँख खुली तो मंदिर पर नज़र गई

कुछ हलचल थी एक धुंधला सा साया,,डर के साथ सहम भी गई थी रज़ाई ओढ़ ली पर मन की उत्सुकता कम नही हुई हल्के से रज़ाई हटाई तो होश गुम सर्द  सुबह यकीन मानिए मैं   पसीने से तर थी…वह धुन्दला साया मेरे क़रीब बेहद क़रीब

सुनो मैं जा रहा हूँ

कराहती  सी आवाज़

हिम्मत नही थी पर सब कुछ सुन रही थी बस वही संवाद आप सभी के समक्ष,हाथ मे चाय लिए बस उसीको को शब्दों में रख रही हूँ, जिंदगी का एक न भूलने  अनुभव जो मुझे हरपल  जकड़ कर रखेगा ..!

मैं अनुभव लिखती  हूँ औऱ  यह  एक पर ख़ास

 

#साक्षात्कारवक़्तके_साथ

यह बेहतर रहेगा वह कहता रहा औऱ मैं जड़वत सुनती रही कोई प्रश्न नही थे वह  जो कहता गया वह लिख रही बस

 

पता है वसु

स्मृतियों को  समृद्ध करता  मैं वक़्त  साथ चलना नही जानता, बस सिर्फ़ भागता रहता  हूँ बेइंतहा मानो  मुझें इंसानी जिंदगी की मैराथन से कोई लेना देना नही, बस  अपने ध्येय की गति  पर केंद्रित, लड़खड़ाता हुआ बस चलता रहता  हूँ यह लड़खड़ाहट हमारी होती है, वह गति हमारी होती है, एक पल जो गया औऱ जो पल आनेवाले है बस वही हमारे औऱ वही जीने भी पड़ते हैं, आपकी इच्छा  हो न हो,बिता हुआ पल लौटता ही नही है, औऱ यूँही दिन गुज़र जाता है फिर हफ़्ता, फिऱ एक महीना ,साल औऱ सदियां, यह लौटते नही है चाहकर भी,बस स्मृतियों का कोश समृद्ध  हो जाता है, हर वर्ष हम सभी को  कैद कर देता है, दरअसल हमारा #अपहरण हो जाता है, क्योंकि इस कैद से हम क़भी आज़ाद नही  हो सकते । उम्र सिर्फ़ तिथियों का खेल हैं, पुराने कैलेंडर की तरह हर पन्ने सी उम्र जर्द पीली  कागज़ी, झुर्रीदार होती हुई हमे यह अहसास दिलाती है कि सुन मूर्ख प्राणी तू तुच्छ हैं, वक्त का एक मजबूर गुलाम, तेरे हाथ मे सिर्फ़ औऱ सिर्फ़ कर्म है जो तुझे करने हैं, औऱ तू सिर्फ अपने कर्मो की वजह से पहचाना  जाएगा, वक्त एक बात बड़ी बेफ़िक्री से कहता है मै अपना कर्म करता हूँ मैं स्वार्थी हूँ मोह माया से दूर,यह तुम इंसानों की फितरत हैं जो मुझे कोसता भी हैं औऱ सराहता भी,मेरे पहियों को रुकने की इजाज़त ही नही तो #हे मानव तू बस चलता चल क्योंकि वर्ष   हो या मैं लौटता नही  क़भी नही, जो आया वह जाएगा यह तय है ।  समय कहता हैं मै क्षणभंगुर हूँ  तुम्हारी जिंदगी  सरीखा नही तुम मनुष्य ज़िन्दगी  जी लेते हो पर मैं रफ़्तार हूँ जी नही पाता अपना ही वक्त बस दे जाता हूं मैं ख़ुद को तुम सबको यादों में रह जाता हूँ स्मृतियां बन ,

जिस तरह धूप छाँव संगी साथी हैं उसी तरह दिन रात भी,वही सुख दुःख भी पर गौर से देखना यह सिर्फ़ नाम की जुगलबन्दी हैं साथ कि नही तुम मनुष्य और मैं वक्त भी इसी जुगलबन्दी के तहत आते हैं साथ हैं पर साथ नही।क्योंकि हम बेमेल हैं, औऱ जहाँ मेल न हो यह जानते हुए भी तुम इंसान#इश्क़ कर बैठते   हो   जो चीज तुम्हे हासिल नही होती उसीसे तुम इश्क़ करते   हो और जब नही मिलती तो अपराध औऱ नफ़रत, तो सुनो मैं अबभी  गुज़र  जाऊँगा बेशक़ इस बार मुझे covid19 का नाम मिला है जो आने वाली तमाम पीढ़ियों के स्मृति कोश में आबाद औऱ चिन्हित रहेगा डर के साथ नफरत भी रहेगी ,मैं शुभकामनाएं   दे सकता हूँ मेरी अगली चाल या यूं  कहो कदम क्या होगा मैं भी नहीं जानता,शायद इस बार से ज़्यादा ख़ौफ़नाक, या बेहद खूबसूरत, खैर अलविदा स्वरा काश में इससे ज्यादा कुछ कहता पर मैं ख़ुद नही जानता कि अगला पल कैसा होगा,मैं सिर्फ़ चल सकता हूँ जिसकी गति  का रुकना निषेध है, जुर्म है, साथ ही साथ एक भयानक सच भी की अनिश्चितता सदैव रहेगी मानव जीवन   की  पर जानती हो मै सृजन का कारक भी..कैसे रुक सकता हूँ तुम्ही बताओ, चलो अब मैं विदा लेता हूँ तुम्हारी स्मृतियों में कैद सदैव रहूँगा।

अलविदा अलविदा अलविदा,,,

तुम्हारा दोस्त ,सबक या  कुछ भी सारे सम्बोधन दिल से  स्वीकृत ,#वक्त

 

बहुत सारे प्रश्न पूछने थे  पर यह संवाद भी अधूरा रहा औऱ अधूरा ही रहेगा आप जानते हैं क्यों?

वह गुज़र गया औऱ वह लौटकर नही आएगा क़भी.

नज़रे सिर्फ़ एक टक घड़ी की तरफ़

 

@सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ उत्तरप्रदेश

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