दुनिया

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण के निधन के बाद जो हुआ वह बिहार सरकार के मुंह पर कालिख ही तो है

पटना। जाने माने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पटना में निधन हो गया। उनके बारे में यह कहा जाते रहा है कि गलत गणित पढ़ाने पर वशिष्ठजी अपने शिक्षक को ही टोक दिया करते थे। कम्प्यूटर और कैल्कूलेटर को भी उन्होंने कर दिया था मात लेकिन सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से जूझने के बाद आज जिस तरह से शासन प्रशासन ने उन्हें गुमनाम कर दिया यह बहुत ही पीड़ादायक है।

बहुत पहले एक किताब पढ़ी थी, who will cry when u will die, लगता है आज जैसे उसका जवाब मिल गया ….No one will cry when u will die. चाहे तुम कुछ भी कर लो इस दुनिया इस समाज और इन तथाकथित अपने लोगों के लिए। अब वशिष्ठ बाबू से ज्यादा कौन क्या कर सकता है, और आज लिखते हुए मेरा कलम कांप रहा है कि हम कितने अधम हो गए हैं जो एक चमकते सितारे के टूटने पर एक विधिवत श्रद्धांजलि तक न दे पा रहे हैं।

अरे सुशासन बाबू! तुम्हे हमने गद्दी पर इसलिये नहीं बिठाया था कि तुम हमारे किसी काम न आ सको। अगर नहीं सुनाई दे रही थी उस भाई की चीत्कार जो अपने विलक्षण प्रतिभाशाली भाई  के अस्पताल से फेंके शव को लेकर अकेला खड़ा रो रहा था। तो सच में डूब मरो बिहार सरकार तुम्हारे बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। जिसने तुम्हेँ आर्यभट्ट के बाद गणित की दुनिया में सबसे ऊंचा पहुँचाया और तुम अभागे उसके शरीर को इस लोक से  देवलोक ले जाने के क्रम में एक अदद एम्बुलेंस का व्यवस्था नहीं कर पा रहे तो सच में थू है तुमपर।

हर साल तुम आयोजन करते हो न प्रवासी दिवस, करोड़ों खर्चे करते हो, उन लोगों के लिए जो तुम्हें छोड कर चले गए और तुम आज भी कुत्ते की तरह लार चुलाये उनके पीछे पीछे फिरते हो ताकि वो अप्रवासी निवेश की रोटियां फेंके। पर यही तो गलती कर बैठे थे हमारे वशिष्ठ बाबू, वो तो वापिस लौट आये थे ताकि अपनी धरती पर अपने लोगों की सेवा कर सके। पर न तो उन्हें जीते जो ही वो मुक्कमल आदर और जगह मिला न आज मृत्यु के बाद ही। सच मे हम कितना गिर गए हैं, एक श्रद्धांजलि सभा तक उस इंसान के लिए नही रख सकते।

कभी कभी तो सही में लग रहा है भगवान ने उन्हें अपने पास बुला कर अच्छा ही किया, मर तो वो रोज ही रहे थे, कभी अपनी लाचार बीमारी से, तो कभी तूम्हारी लापरवाही और नजरअंदाजी से। पर जरूर याद रहे ये एक दिन हर किसी की जिंदगी में जरूर आयेगी, और तब तुम भी यूँ ही खुले मुँह और खुली मुट्ठी ही निकल जाओगे।

वशिष्ठ बाबू ने तो बहुत कुछ दिया था और बहुत सारे लोगों को छोड़ रखा है अपने पीछे अश्रु बहाने के लिए।पर सोचना कभी, तुम्हारा क्या होगा कालिया। बाकी त जे है से हइए है।

@विजया एस कुमार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button