लेखक की कलम से

बदलना खुद को ही पड़ता है …

हमारे आस पास कुछ न कुछ ऐसा घटता ही रहता है जो हमें पसंद नहीं आता है। ऐसे लोगों से मुलाकात होती ही रहती है जिनकी हरकतें हमें विचलित कर देती हैं। ऐसे लोगों की वाणी, विचार और कर्म केवल दुख ही देते हैं। तब अनायास ही मन में यह विचार आता है कि कितना अच्छा होता अगर हम इन्हें बदल पाते।  कोई ऐसा तरीका होता जिससे उन्हें समझा पाते कि उनसे क्या अपेक्षित है ? कई लोग कोशिश भी करते हैं दूसरों में बदलाव लाने की।

कभी कभी अपने प्रयास में सफल भी हो जाते हैं परंतु अधिकतर केसों में कोशिश करने पर भी नाकामी ही हाथ लगती है। जो जैसा है वैसा ही रहता है और बदलाव की कोशिशें बेकार चली जाती हैं। एक नया दुख हम पाल लेते हैं कि इतनी कोशिश करने पर भी हम बदलाव नहीं ला पाए। या तो हमारे अंदर काबिलियत नहीं है किसी को बदलने की, या हमारे प्रयासों में ही कमी थी ? अच्छा होता हम किसी को बदलने के बारे में सोचते ही नहीं।

किसी भी इंसान को बदलने के बारे में सोचने से पहले हमें एक सत्य जान लेना चाहिए। यदि यह सत्य पहचान लिया जाए तो दुख नहीं उठाना पड़ेगा। पछतावा नहीं करना पड़ेगा। वो अटल सत्य यही है कि हम केवल खुद को बदल सकते हैं। मज़ेदार बात यह है कि खुद को हम कभी बदलना नहीं चाहते हैं। न कभी ऐसा सोचते हैं न ही करते हैं। इस वैश्विक सत्य को स्वीकार ही नहीं करते हैं कि दूसरे लोग भी हमारी तरह ही हैं वो भी खुद को नहीं, दूसरों को ही बदलना चाहते हैं। फिर बदलाव आएगा कैसे ?

हमारी सामर्थ्य केवल खुद को बदलने की है। इस सत्य को जिस दिन स्वीकार कर लेंगे उसी दिन से हमारे प्रयास सही दिशा में होंगे। इसलिए आज से ही खुद को बदलने के लिए कोशिश शुरू करें। हम जैसे व्यवहार की दूसरों से अपेक्षा रखते हैं वैसा खुद करना शुरू कर दें।

यकीन मानिए अपने आस पास वह बदलाव आपको महसूस होने लगेगा। आपने जैसा सोचा था वो आपको नज़र आने लगेगा। एक पुरानी कहावत है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। यह प्रयोग यदि संसार का हर इंसान दोहराएगा तो संसार अवश्य ही बदल जाएगा। हर तरफ अच्छाई होगी और बुराई को ख़त्म करने की हमारी सामर्थ्य होगी।

इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही है कि हम खुद को जानें। भली भांति पहचानें। केवल हमारे अंतर्मन का संकल्प ही बदलाव ला सकता है। दूसरों की कमियों की गिनती करके, उनकी खुद से तुलना करके या उन्हें बदलने की कोशिश करके हताशा के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा। मन का चैन और सुकून नहीं मिलेगा। इसलिए अगर बदलना है तो खुद को बदल डालो।

 

©अर्चना त्यागी, जोधपुर                                                  

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