लेखक की कलम से

प्रेम पूर्ण अस्तित्व…

प्रेम से झंकृत हृदय ले
चल पड़ी है जब नदी,
मिलन होगा उदधि से
यह नियति उसकी है बदी।

भानु सागर से निकलकर
ओर धरती के बढ़ा,
वृक्ष,पादप,प्राणि सब पर
रंग रति का है चढ़ा

©दिलबाग राज, बिल्हा, छत्तीसगढ़

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