शुभ दीपावली …
घर के दलानों पर जुगूनु सी जगमगाहट होते होते एक
नन्हे हाथों ने बोझिल उदास मुस्कान में पेट की तीव्र अगिन
को दबाते हुए।
दीये बेचने के लिए करबद्ध सूनी आँखों से लाखों सवाल
करते हुए बोली।
ड्राइवर ने अनसुना करते हुए कार कुछ आगे ली।
मन नहीं माना।
कुछ तो खिंचाव होने लगा था।
दिल उसकी मासूम अनकही कथा सुनने को बेचैन होने लगा।
माँ मृत्यु शैया पर दम तोड़ चुकी थी।
छोटा 2 साल का भाई भूख से माँ के शव पर बिलखते
हुए तड़प रहा था।
नन्ही सी कली हजारों उलझनों में डूबी मिट्टी के दीये
को बेचने की ललक लिये।
कार रोक कर उसके पीछे चलते चलते देखा निक्षुब्द दीपावली
का नजारा पेट की ज्वलनशील अगिनपथ आँखोँ में
पटाखे की भांति वेग पूर्ण सूना जीवन।
जिसमें भूत ज्ञात नहीं, वर्तमान की सुध नहीं, भविष्य अज्ञात था। दुनिया बेसुध अपनी धुन में जीती जा रही है।
पाँच साल के बच्चे की जीवन की पाठशाला ने
एक ऐसा पाठ मुझे पढा दिया। अश्रु पूर्ण दीपावली का
दर्द नाक दृश्य दिखा दिया।
असहनीय कष्ट सहती नन्ही बाला ने अपने भाई को ह्रदय से लगा लिया।
माँ के जाने के गम को सहना मुश्किल था। भाई की भूख ने नन्हे से दिल में कोहराम मचा दिया।
मेरे मन के निक्षुब्द सवालो ने मेंरे जह्नन में एक सवाल किया।
प्रकाश पर्व की दीपावली ने मुझे समाज की अंधेरी गलियों
के गलियारों के धूल के फूलों का मासूम चेहरा दिखा दिया।
समाज के हर शख्स से अनुरोध करने चाहती हूँ।
? दीपावली की जगमगाहट से खुशियों की आहट से
धूल भरे गलियारों में अगर खुशियाँ बाँटेंगे।
भारतवर्ष में हर दिल में, पेट भरे, मासूम चेहरों की भी
मुसकुराहटों भरी दीपावली होगी।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा