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महाराष्ट्र से लेकर छत्तीसगढ़ और देश के कई राज्यों में गर्भाशय निकालने का चल रहा है गोरखधंधा

महाराष्ट्र में 30,000 महिलाओं के निकाले गए गर्भाशय

मुंबई { हेमलता म्हस्के} । अपने देश में माहवारी को लेकर निश्चिंत बने रहने की स्थिति नहीं है। महाराष्ट्र में करीब 30,000 महिलाओं के गर्भाशय इसलिए निकलवा दिए गए हैं ताकि वे काम से छुट्टी ना ले सकें। ऐसी घटनाएं महाराष्ट्र के अलावा बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में भी बढ़ रही हैं। इन राज्यों में भी बेरोकटोक महिलाओं के कोख उजाड़ने की दर्दनाक हरकतें की जा रहीं हैं। कहा जा रहा है कि स्वार्थ के वशीभूत होकर डॉक्टर ही कथित तौर पर मामूली सा मर्ज के लिए गर्भाशय हटाने की सलाह देते हैं ताकि उनको गर्भाशय हटाने के नाम पर मोटी आमदनी हो सके।

बताते हैं कि कोख उजाड़ने की घटना उन इलाकों में ज्यादा हो गई है जहां सरकारी अस्पताल नहीं हैं और छोटे क्लीनिक और निजी अस्पतालों की संख्या बढ़ गई हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन घटनाओं को महिलाओं के लिए अत्यंत दर्दनाक और दयनीय बताया है। महाराष्ट्र में कोख उजाड़ने की अमानवीय घटना ज्यादा हो रही है।

अभी हाल में महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री नितिन राउत ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह मजदूरी बचाने के लिए गन्ना श्रमिक महिलाओं द्वारा अपना गर्भाशय निकलवाने की घटनाओं पर रोक लगाने की खातिर मामले में हस्तक्षेप करें।

नितिन राउत का कहना है कि मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में बड़ी संख्या में गन्ना श्रमिक हैं, जिनमें खासी संख्या महिलाओं की है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि माहवारी के दिनों में बड़ी संख्या में महिला मजदूर काम नहीं करती हैं। काम पर न जाने के कारण उन्हें मजदूरी नहीं मिलती है। ऐसे में पैसों की तंगी से बचने के लिए महिलाएं अपना गर्भाशय ही निकलवा दे रही हैं, ताकि माहवारी ना हो और उन्हें काम से छुट्टी न करनी पड़े।

कांग्रेस नेता राउत का कहना है कि ऐसी घटनाओं की संख्या करीब 30,000 है। राउत का कहना है कि गन्ने का सीजन छह महीने का होता है। इन महीनों में अगर गन्ना पेराई फैक्ट्रियां प्रति महीने चार दिन की मजदूरी देने के राजी हो जाएं, तो इस समस्या का समाधान निकल सकता है।

कांग्रेस नेता राउत ने अपने पत्र में ठाकरे से अनुरोध किया है कि वह मानवीय आधार पर मराठवाड़ा क्षेत्र की इन गन्ना महिला मजदूरों की समस्या के समाधान के लिए संबंधित विभाग को आदेश दें।

इसके पहले राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस बारे में छपी खबरों पर संज्ञान लेते हुए महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखा तो इसकी जांच कराने का आदेश दिया गया। पर अभी तक कोई जांच रिपोर्ट सामने नहीं आया है।

महाराष्ट्र के बीड जनपद में 4,605 महिलाओं के गर्भाशय सिर्फ इसलिए निकाल दिए गए, ताकि वह अनवरत गन्ने की कटाई का काम करतीं रह सकें। यह खुलासा पिछले साल महाराष्ट्र विधान परिषद में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री एकनाथ शिंदे ने किया था। गौरतलब है कि इस घटना की जांच के लिए सरकार ने एक पैनल भी गठित कर दिया है।

पिछले तीन साल में मराठवाड़ा के बीड जनपद में 4,605 महिलाओं के गर्भाशय निकाल लिए गए हैं। इस बात का पता बीड डिस्ट्रिक्ट सिविल सर्जन की अध्यक्षता में गठित एक समिति की जांच में चला है।

समिति की रिपोर्ट के अनुसार बीड में निजी क्षेत्र के 99 अस्पतालों में 2016-17 से 2018-19 के बीच इतनी बड़ी संख्या में 25 से 30 वर्ष के आयु वर्ग वाली महिलाओं की अज्ञानता का लाभ उठाकर उनके गर्भाशय निकाल दिए गए। ताकि वह गर्भ धारण न कर सकें और उनसे गन्ना कटाई का काम लिया जा सके।

स्वास्थ्य मंत्री ने विधान परिषद में यह जानकारी शिवसेना की दो महिला सदस्यों नीलम गोरे एवं मनीषा कायंदे के सवालों का जवाब देते हुए दी थी। हालांकि शिंदे के अनुसार इनमें कई महिलाएं ऐसी भी हैं, जो गन्ना कटाई का काम नहीं करती हैं।

राज्य सरकार ने इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाने की घटना की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया है, जिसका नेतृत्व स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव करेंगे। इस पैनल में तीन स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक एवं कुछ महिला विधायक भी शामिल होंगी। यह तय हुआ था कि पैनल दो माह में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा।

यह मामला पहली बार पिछले साल के अप्रैल में तब सामने आया था, जब अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया था। उसके बाद ही बीड के सिविल सर्जन की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित कर मामले की जांच की गई थी।

गौरतलब है कि जिन महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए हैं उनको माहवारी से जरूर मुक्ति मिल गई है लेकिन गर्दन, पीठ और घुटने में लगातार दर्द बना रहता है। कभी-कभी हाथ-पैरों में सूजन भी होने लगा है। चक्कर भी आता है और शरीर भी कमजोर हो जाता है।

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