मध्य प्रदेश

पूर्व सीएम दिग्विजय ने सोशल मीडिया पर लिखा- निर्माणाधीन मंदिरों में मूर्ति की प्रतिष्ठा कभी नहीं होती….

इंदौर। पूर्व प्रधानमंत्री स्व नरसिम्हा राव बाबरी मस्जिद राम मंदिर निर्माण को केवल धर्म गुरुओं को सौंपना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने रामालय न्यास का गठन कर चारों शंकराचार्य व रामानंदी संप्रदाय के प्रमुख स्वामी रामनरेशाचार्य जी को उसका सदस्य मनोनीत किया। पंजीयन कर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज को उसका अध्यक्ष बनाया गया। उच्चतम अदालत के फैसले के बाद केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण हेतु न्यास बनाना था। लेकिन @narendramodi जी ने हमारे धर्मगुरुओं के रामालय न्यास के होते हुए भी नये न्यास का गठन किया और उसे VHP को सौंप दिया। क्या यह उचित था? क्या यह न्याय संगत था? क्या यह हमारे धर्मगुरुओं का अपमान नहीं था? @RSSorg

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने फिर एकबार शंकराचार्य के बहाने श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर निशाना साधा है। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि- हिंदुओं के लिए सनातन धर्म के सबसे सम्मानित प्रमाणित 4 शंकराचार्य हैं। इनमें आज सबसे वरिष्ठ व शास्त्रों के ज्ञाता पुरी के शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराज हैं। उनके अनुसार निर्माणाधीन मंदिरों में मूर्ति की प्रतिष्ठा कभी नहीं होती है। राम मंदिर निर्माण के लिए अदालत में लड़ाई VHP ने नहीं लड़ी, पर उसे जोशीमठ व द्वारिका के शंकराचार्य स्व. स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने और वर्तमान जोशीमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरान्द जी महाराज ने लड़ी।

@VHPDigital के लिए धर्म आस्था का प्रतीक नहीं है। उनका शुरू से यह प्रयास रहा है कि किसी प्रकार सनातन धर्म के मंदिर मठ आश्रम भूमि व चढ़ौत्री पर राजनीतिक स्वार्थ के लिये कब्जा कर उपयोग किया जाये। क्या पूर्व में रथ यात्रा के समय VHP ने मंदिर निर्माण के लिए लगभग ₹1400 करोड़ का चंदा नहीं उगाया था? वो कहाँ गया? अब शासकीय न्यास में फिर चंदा लिया गया और श्रद्धालुओं ने मुक्त हस्त से फिर चंदा दिया। क्या VHP संचालित न्यास ने अयोध्या जी में भूमि खरीदी में घोटाला नहीं किया? क्या उसकी जांच नहीं होना चाहिए? धर्म हमारे लिए हमारी आस्था है @BJP4India के लिए सत्ता संपत्ति चंदा हथियाने का माध्यम है।

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