लेखक की कलम से

फागफूहार और जीवन के रंग…

 

माह फागुन और ऋतु बसंत जन मानस में लेकर आया नया रंग।

उल्लाश भरा ये उत्सव आया होली का लेकर के रंग।।

 

रंग चढ़े हैं जनमानस पर फाग फूहाड़

बाला वो रंग।

खुमारी  त्याग कर मानस अब निकल पड़े उड़ाने रंग।।

 

रंग गहरा हो प्यार का जिससे आपसी सौहार्द का चढ़े जो रंग।

आँख में पानी और अपनत्व भाव संग बना रहे वो प्यार का रंग।।

 

रंग चढ़े जो मनमस्तिष्क पर राष्ट्र प्रेम का भरकर रंग।

जिसकी अमिट छाप सीने पर कभी धुमिल न हो इसका रंग।।

 

रंग चढ़े जो समर्पण भाव का  टूट कर भी बरसे रंग।

खुद भींगे रंग फुहार में आत्म समर्पण का लेकर रंग।।

 

रंग फुहार हो उस मरु भूमि पर जिसके हों सोए विचारों का रंग।

रंग फुहार के इस बृष्टि से जागें उनके सोए रंग।।

 

रंग रंग के इस खेल में चलता रहे आत्मसम्मान का रंग।

अच्छे बुरे का अंतर कर ऊपर रखें आत्मसम्मान का रंग।।

 

क्या खोया क्या पाया हमने इसकी गिनती का हो रंग।

ताकि अगली फागफुहार पर गिनती हो सके जीवन के रंग।।

 

क्षणभंगुरी जीवन  में लिपटे हुए हैं सारे रंग।

इन रंगों को मिलाकर ही अब बनाना इंद्रधनुषी रंग।

 

इंद्रधनुषी छटा विखेरेंगे  बनकर मानव जीवन  में सतरंगी रंग।

हँसी खुशी फिर निकल जायेंगे मानव जीवन के हर एक क्षण।।

 

©कमलेश झा, फरीदाबाद                       

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