दुनिया

देश का पहला ‘पुस्तक-गांव’

एक पढ़ाकू टूरिस्ट को और क्या चाहिए

सतारा के पंचगनी से लेकर महाबलेश्वर तक की सरजमीं को सुरम्य बनानेवाली पहाड़ी जनपद में छोटी-सी बस्ती है भिलार। मुश्किल से दो-ढ़ाई सौ परिवारों वाली किसानी बस्ती। आबादी यही कोई 28-29 सौ के बीच ही। 

बस्ती से दूर खेतों और बगीचों की ओर चलें जायें तो जीभ की सरसता बढ़ जाये और बस्ती के भीतर घरों और दालानों तक पहुंच जायें तो मन-आत्मा की सरसता। जीभ की सरसता चटक लाल-लाल स्ट्रॉबेरी से और मन-आत्मा की सरसता रंग-बिरंगी लायब्रेरी से!

भिलार बस्ती में जितने घर उतनी लायब्रेरी। हर घर एक लायब्रेरी। एक घर एक विषय की लायब्रेरी। इन लायब्रेरी की पुस्तकें भी कैसी कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, डायरी, आत्मकथा, निबंध की शैली में विचार, इतिहास, विज्ञान,पर्यावरण, धर्म, अध्यात्म, कला, लोक, जीवन विद्या के शिल्प में। बच्चे, बूढ़े, जवान, महिला, थर्ड जेंडर हर किसी के लिए। जो मन कहे, वही पढ़ें। जैसा चाहें – वैसा ही बांचें।

बस…गली में डिसप्ले बोर्ड देखें और अपनी पंसद की किताबों वाली लायब्रेरी की ओर बढ़ चलें…। बस्ती में ऐसी कोई झोपड़ी, मंदिर, स्कूल, पंचायत भवन, पटवारी भवन और सामुदायिक ठौर नहीं जिसमें मनमाफ़िक विषयों वाली लायब्रेरी न हो।

लाइब्रेरी की दीवारें भी ऐसी, जहां चित्रांकित कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति, लोककला, इतिहास और धर्म के दृश्य और प्रसंग आगंतुकों की आंखों को अपने जादू में घेर-घेर लें। जिन घरों में जिस विषय से संबंधित पुस्तकें, उसके बाहर उस विषय से संबंधित लेखकों और साहित्यकारों के चित्र। प्रत्येक घर में 400 से 500 पुस्तकें। वह भी केवल मराठी नहीं, हिंदी और अंग्रेजी  की किताबें भी। घरों में मेहमान पाठकों के बैठने का बेहतर प्रबंध। पुस्तक प्रेमियों के लिए टेबल, कुर्सी, अलमारी, सजावटी छतरी, बेंच…..।

कुछ मकानों में तो पाठकों के ठहरने और खाने का भी रोचक इंतजाम। मराठी डिश से मन न भरे तो कुछ चटपटा खाना के लिए गांव में दो ख़ास रेस्टोरेंट भी हैं। एक पढ़ाकू टूरिस्ट को इस गांव में समय को सार्थक करने के लिए भला और क्या चाहिए ! और सिर्फ़ इतना ही नहीं कभी दीवाली, क्रिसमस और गर्मी की छुट्टी में जायेंगे तो साहित्य महोत्सव का भी ख़ास आनंद !

मैंने तो सुना है कि सुप्रसिद्ध संगीतकार नौशाद और गीतकार आनंद बक्शी का रागत्मक लगाव रहा है इस बस्ती से। मुंबई से जब-तब मन का निनाद बेरंग हो उठता तो सीधे यहीं चले आते थे। अब तो देश-दुनिया से लोग इस गांव की मिट्टी और पुस्तकों के गंध से खिंचे चले आ रहे हैं।

वरिष्ठ अध्येता, संस्कृतिकर्मी और ‘पुस्तकों की नियति’ जैसी चर्चित किताब की लेखिका डॉ. प्रवेश सक्सेना की मानें तो यह ब्रिटेन के वेल्स शहर के हे-ऑन-वे की प्रतिकृति है ( जो किताबों का क़स्बा के विशेषण से प्रसिद्ध है)। जिसे इस छोटे से खुशनुमा गांव में साकार कर दिखाने में विनोद तावड़े का स्वप्न और गांववासियों की प्रतिबद्धता कम रोचक नहीं।

भिलार यानी 5 लाख से अधिक गांव, मजरा, टोलों वाले महादेश भारत का पहला ‘पुस्तकों का गांव’। मराठी में कहें तो ‘पुस्तकांचं गांव’।

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