लेखक की कलम से

खुश रहिया…

मां आपकी अनुपस्थिति महसूस हो रही है!

आंखे भर आ रही हैं,

समय-असमय,बात-बेबात!

 

वो मेरी कविताओं की पंक्तियों को सुनकर,

वाह! कह उठना,

बड़ा याद आता है,ओ माँ!

 

तुम्हारा वह अंतरात्मा से उपजा

“वाह”

मुझे प्रोत्साहित करता,

मेरी भावनाओं को खेकर,सहारा दे जाता था!

 

वो नैसर्गिक मुस्कान,

जो देवी जैसे मुखमंडल को आलोकित करती!

मुझे देखती,ममता की वर्षा करती!

समर्पित हो सारा प्यार उड़ेल देते!

सब सचित्र होता!

 

मां आपको न पाकर

हृदय व्यथित है!

बस यही तक साथ देना था?

जिस यात्रा की शुरुआत कर गई हो,

अभी जारी है

जब मंजिल का एहसास होता!

वह करीब है,

तो आप बहुत याद आती हैं!

 

काश!आज आप मेरे संग होती!

तो कितना खुश होती!

शायद मुझसे भी ज्यादा!

क्यों मेरी खुशी का ताउम्र के लिए अधूरा कर चली गई?

 

बोलो ना क्यों?

हमेशा खुश रहिया!

हमेशा हमेशा खुश रहिया!

आशीर्वाद देकर,

कहां चली गई?

मेरी माँ!

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                           

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