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अमेरिकी विशेषज्ञों का दावा : बच्चों को गंभीर रूप से बीमार करने वाले कोरोना वायरस का नया रूप जल्द आएगा सामने, बच्चों को भी वैक्सीन लगवाना जरूरी

नई दिल्ली (पंकज यादव) । कोविड-19 की दूसरी लहर भारत में शुरू हो गई है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में कोरोना से पड़ित मरीजों की संख्या सामने आ रही है। इससे बचने भारत में टीकाकरण अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। इन सबके बीच अमेरिका के विशेषज्ञों ने भारत को लेकर नया दावा किया है। दावे के मुताबिक बच्चों को गंभीर रूप से बीमार करने वाले कोरोना वायरस का नया रूप जल्द सामने आएगा। जिससे बचाने के लिए अब बच्चों को भी टीकाकरण अभियान से गुजरना होगा।

भारत में रोज करीब 30 लाख और अमेरिका में करीब 20 लाख लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाई जा रही है। दोनों देश जल्द से जल्द अपनी अधिकतम वयस्क आबादी को वैक्सीन देना चाहते हैं, मगर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना से अंतिम लड़ाई जीतने के लिए बच्चों का वैक्सीनेशन बेहद जरूरी है। उनका दावा है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो जल्द ही कोरोना वायरस का ऐसा वैरिएंट सामने आ जाएगा जो बच्चों को गंभीर रूप से बीमार करेगा।

अमेरिका में ब्रिघम एंड विमेंस हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन के डॉक्टर जेरेमी सैमुअल फॉस्ट और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ साइंस के वायरोलॉजिस्ट डॉ. एंजेला रासमुसेन का कहना है कि बच्चों में कोरोना के गंभीर मामलों की संख्या बेहद कम होने के बावजूद उन्हें दो प्रमुख वजहों से तेजी से वैक्सीन देने की जरूरत है।

पहली वजह है- बच्चों में कोरोना के लंबे समय के लिए होने वाले असर (जैसे इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम) के जो भी मामले सामने आए, वे बेहद गंभीर निकले। हालांकि इनकी संख्या बेहद कम है। कोरोना के कई और बुरे प्रभावों को लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं। वजह यह कि बच्चों में कोरोना के ज्यादातर मामले एसिमटोमैटिक हैं। ऐसे में माता-पिता को बच्चों में कोरोना का पता नहीं चलता। ये दूसरी वजह सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन इस पर सबसे कम ध्यान है। दरअसल, इस बात की पूरी संभावना है कि वायरस फैलता रहेगा और यह ज्यादा खतरनाक रूप में म्यूटेट यानी बदलता रहेगा। ऐसा कोई एक या एक से ज्यादा म्यूटेशन बच्चों को भी नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।

वायरस के कुछ नए वैरिएंट्स ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका, ब्राजील और कैलिफोर्निया में मिल चुके हैं। एपिडेमियोलॉजिस्ट इन वैरिएंट्स पर निगाह रखे हुए हैं। इनमें से कुछ पुराने वैरिएंट्स के मुकाबले तेजी से फैलने वाले हैं। वहीं ब्रिटेन में मिले बी1.1.7 वैरिएंट में मौत की दर ज्यादा पाई गई है। हालांकि अच्छी बात यह है कि मौजूदा वैक्सीन इन वैरिएंट्स के खिलाफ भी काम कर रही हैं।

दोनों अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि जरूरी नहीं कि हम भविष्य में सामने आने वाले कोरोना वायरस के वैरिएंट्स को लेकर इतने भाग्यशाली रहें। वायरस जितना ज्यादा फैलेगा, उसके उतने ही ज्यादा वैरिएंट्स सामने आएंगे। वे ज्यादा खतरनाक होते जाएंगे। बच्चों से ही कोरोना वायरस के ऐसे वैरिएंट्स सामने आएंगे, जो बच्चों को गंभीर रूप से बीमार कर देंगे। खासतौर पर जब वयस्कों में वैक्सीनेशन के चलते वायरस को पनपने के लिए अच्छे मेजबान की जरूरत होगी। डॉ. जेरेमी और डॉ. एंजेला का कहना है कि बच्चों का जल्द ही तेजी से वैक्सीनेशन करना चाहिए ताकि ऐसी कोई भयावह स्थिति पैदा न हो जाए।

संक्रामक बीमारियों के जाने-माने अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फौसी समेत कई विशेषज्ञों का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी को हासिल करने के लिए बच्चों का वैक्सीनेशन जरूरी है। कोरोना वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित हैं, इसकी जांच के लिए क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं, लेकिन हमें इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि इन ट्रायल्स से कोई ब्लॉकबस्टर नतीजे सामने आने वाले नहीं। हम शायद यह नहीं जान पाएंगे कि बच्चों में इस गंभीर संक्रमण को रोकने के लिए यह टीके कितने प्रभावी होंगे, क्योंकि सौभाग्य से इस समय संक्रमित बच्चों की संख्या इतनी ज्यादा नहीं है कि उन पर सही नतीजे देने वाले ट्रायल किए जा सकें।

अमेरिका में बच्चों के लिए चल रहे ट्रायल्स का फोकस वैक्सीन के सुरक्षित होने और उनसे इम्यूनिटी पैदा होने पर रहेगा। यानी ट्रायल से पता करने की कोशिश की जाएगी कि क्या ये वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित हैं? और वैक्सीन की कितनी खुराक किसी तरह के बड़े साइड इफेक्ट के बिना पर्याप्त इम्यूनिटी पैदा करेगी या नहीं। हालांकि नकारात्मक बात यह है कि इन ट्रायल्स के पॉजिटिव नतीजों के बाद भी माता-पिता अपने बच्चों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं होंगे, क्योंकि उन्हें लगता हैं कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं।

एक नए अध्ययन के मुताबिक जो लोग माता-पिता नहीं, उनके मुकाबले माता-पिता बन चुके लोग कोरोना वैक्सीन लगवाने में हिचकिचाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के वैक्सीन लगवाने के मामले में भी यही भावना आड़े आ सकती है। कोरोना वायरस से 10 हजार संक्रमित बच्चों में से एक बच्चे की मौत हो सकती है, हालांकि कुछ अन्य अध्ययन इस दर को कम बता रहे हैं। अमेरिका के इन दोनों विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स के मुकाबले वायरस से होने वाला नुकसान ज्यादा भारी है।

किसी भी दूसरी वैक्सीन की तरह हमें इस संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए कि वैक्सीनेशन के बाद बीमार होने के वाले बच्चों के किस्से सामने आएंगे और वैक्सीन को दोष दिया जाएगा। मगर हम वैक्सीनेशन को रोक नहीं सकते। डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर्स को वैक्सीनेशन के बाद सामने वाली ऐसी रिपोर्ट्स पर न केवल निगाह रखनी चाहिए बल्कि उन्हें साझा भी करना होगा। हमें साइड इफेक्ट की किसी भी कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर समझने से बचना चाहिए।

दोनों अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि हमें माता-पिता को आश्वासन देना होगा कि वैक्सीन के ट्रायल और उसके डेटा की समीक्षा के बाद वैक्सीन लगवाना सुरक्षित होगा। इसके बाद हमें समाज के कम पढ़े-लिखे तबके तक पहुंचना होगा। इसमें विदेशों के बच्चे भी शामिल हैं, क्योंकि कहीं बाहर उभरने वाला कोई भी नुकसानदायक वैरिएंट अंततः हम सब तक पहुंच जाएगा। अब तक बच्चे सौभाग्य से बचे हुए हैं। अब हमें जानबूझकर उनकी रक्षा करनी होगी।

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