लखनऊ/उत्तरप्रदेश
निमंत्रण …
निमंत्रण रहा
हिसाब-किताब की दुनिया से बाहर आना
जहाँ अँधेरा नहीं है
जलती हुई धूप नहीं है
जहाँ है शांति, है उजाला
है क्षमा, है प्रेम …
जहाँ हिंसा की आग किसी की आँख में नहीं जलती
कोई पक्षी अमंगल के गीत नहीं गाता !
खुशियों की सुनामी
अनाबिल आनंद धारा लाती है
पूजा पार्वण में सभी के घरों में उन्मुक्त उच्छास रहती …
चाँद की रोशनी में बह जाए नीले पहाड़
फव्वारे गाएँ लोक संगीत
नदी के मन में छलात-छल, बजे रुनु झुनू प्रीत..
©मनीषा कर बागची