छत्तीसगढ़

आदिवासी बच्चे के मौत की गोली किसकी थी ? क्रॉस फायरिंग की जांच करने मुतवेंडी गांव नहीं पहुंच पाई कांग्रेस की टीम, आदिवासियों पर अत्याचार के आरोप…

बीजापुर. क्रॉस फायरिंग में 6 माह की आदिवासी मां की गोद में दूध पी रहे आदिवासी बच्चे की मौत पर उपजे सवालों के जबाव तलाशने छत्तीसगढ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के आदेशानुसार विधायक विक्रम मंडावी के नेतृत्व में कांग्रेस का 5 सदस्यीय जांच दल मुतवेंडी गांव नहीं पहुंच सका. विधायक विक्रम के मुताबिक सुरक्षा कारणों और पहुंच मार्ग पर जहां-तहां आईईडी मौजूद होने की आशंका से सुरक्षा बल के जवानों ने उन्हें और उनकी टीम को मुतवेंडी जाने से रोका.

बता दें कि, आला अधिकारियों से लंबी चर्चा के बाद दल को कांवड़गांव जाने की इजाजत मिली. जहां मुतवेंडी समेत आसपास के गांवों के ग्रामीण बड़ी संख्या में जुटे थे, जो अपनी बात रखना चाहते थे. जांच दल के सदस्यों ने कुछ चश्मदीदों से बात की. उनका बयान दर्ज किया. चश्मदीदों की मानें तो घटना जहां हुई तब वे मौके पर थे. गोली चलने की आवाज सुनते वे सब इधर-उधर अपनी जान बचाने भागे. गोलीबारी थमी तो पाया कि, बच्ची को गोली लगी है. तभी सुरक्षा बल के जवान भी वहां पहुंच गए. मौके पर नक्सली थे, नक्सलियों की तरफ से गोली चली थी या जवानों की तरफ से यह तो जांच में ही स्पष्ट हो पाएगा. जानकारी के अनुसार, जांच दल की मुलाकात मृत बच्ची की मां से नहीं हो सकी है. जांच दल उनसे भी मुलाकात करेगा.

विधायक के अनुसार, भाजपा के सत्तासीन होते साथ ही आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाओं में इजाफा हुआ है. जांच दल जिस इलाके का दौरा कर लौटा है, वहां ग्रामीण डरे-सहमे हुए हैं. वहां ग्रामीण सुरक्षा बलों की बर्बरता का शिकार हो रहे हैं.

एड़समेटा, सारकेगुड़ा पीड़ितों के सवाल पर विक्रम ने कहा कि, सरकार किसी की भी न्याय मिलना चाहिए. एड़समेटा, सारकेगुड़ा बड़ी घटनाएं हैं, कांग्रेस सरकार अपने कार्यकाल में एड़समेटा की न्यायिक जांच रिपोर्ट को विस के पटल पर रख चुकी है. अब होना यह चाहिए कि, भाजपा सरकार रिपोर्ट को सार्वजनिक करते पीड़ितों को न्याय दें.

विधायक ने भाजपा पर उद्योगपतियों का साथ देने और आदिवासियों को जल-जंगल से बेदखल करने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि, भाजपा के सत्ता में काबिज होते उद्योगपतियों को बढ़ावा मिलता है. हसदेव प्रकरण इसकी बानगी है. कांग्रेस किसी भी सूरत में कोल माइंस आवंटन के पक्ष में नहीं हैं.

आदिवासियों से बर्बरता और सुरक्षा बलों के कैम्प विस्तार पर विधायक ने कहा कि यह केंद्र और राज्य सरकार का मसला है. कहां कैम्प बैठाना है और कहां नहीं बैठाना है, यह केंद्र और राज्य सरकारें तय करती है.

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