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अच्छे लोग, अच्छे गुण और अच्छे विचारों को सहेज कर रखना आज का धर्म …

होशंगाबाद में अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन

भोपाल। शासकीय गृहविज्ञान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, होशंगाबाद में अंतर्राष्ट्रीय बेवीनार ” माइंड योर माइंड इन पेंडेमिक टाइम “का आयोजन किया गया जिसमें प्रमुख वक्ता रहे ग्वालियर से डॉ अविनाश शर्मा, भोपाल से अनुपमा अनुश्री, अज़रबैजान से सुचिता सेठ और अरविंद नायक। सभी वक्ताओं ने अपने लाभदायक विचार रखें समसामयिक परिस्थितियों पर, सामाजिक दशाओं और कोविड-19 पर।

मन मस्तिस्क के पोषण के लिए अच्छे विचार, अच्छी भावनाओं की आवश्यकता होती है। महाविद्यालय की प्राचार्य डा. कामिनी जैन द्वारा बताया गया। वहीं डॉ अविनाश शर्मा ने कोविड-19 पर विस्तृत जानकारी दी। सुचिता सेठ ने कोरोना काल के दौरान किस तरह की सामाजिक, पारिवारिक परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं उस पर अपना वक्तव्य दिया।हमें हमेशा अपने आप को मजबूत बनाकर इन प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना है और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना है। अरविंद नायक ने कहा;- इस महामारी में होने वाले परिवर्तन से डरे नही क्योकि परिवर्तन से आप कुछ अच्छा खो सकते है लेकिन आप कुछ बेहतर पा भी सकते है।

आरंभ की अध्यक्ष साहित्यकार, कवयित्री, एंकर अनुपमा अनुश्री ने इस अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा ;-अच्छे विचारों, अच्छे गुणों और अच्छे लोगों को सहेज कर रखना होगा, यही आज युग धर्म है”माइंड योर माइंड’ बहुत सुंदर विचार है। मनुष्य विचारों का पुंज है। हमारे दिमाग में निरंतर विचारों का जन्म होता है और ये विचार हमारे दृष्टिकोण का निर्माण कर, कार्यों में परिणित होते हैं और सुखद और दुखद परिणाम देते हैं।

अपने विचारों की प्रकृति, दिशा और क्वालिटी का जागरूक रहकर प्रतिक्षण सूक्ष्म निरीक्षण बहुत जरूरी है। हमें आधुनिक दौर में सब कुछ इंस्टेंट पसंद है फास्ट लाइफ, इंस्टेंट फूड ‘ त्वरित” सब कुछ। गैजेट्स में तुरंत एक टच में पूरी सृष्टि को घूम लेना। उसी तरह हमारी मानसिकता भी हो गई है अधीरता के साथ ‘त्वरित प्रक्रिया’ देने की। जिसके कई दुखद परिणाम देखने को मिलते हैं । हमें माइंड करना होगा कि क्यों हम इतने व्यग्र हैं, उग्र हैं, त्वरित हैं बिना चिंतन विमर्श, परिणाम का आकलन किए प्रतिक्रिया देने में! परिस्थिति ,वस्तु या व्यक्ति से कोई असंतोष, नाराजगी, क्रोध के इन कमजोर क्षणों से उत्पन्न निराशा – अवसाद, हताशा, बेबसी, असफलता में थोड़ा रुकना, धैर्य, सद्बुद्धि, संयम जरूरी है। इन कमजोर लम्हों से बाहर निकल आने के लिए अपनों से, मित्रों से अपनी भावनाओं को जरूर साझा करें। कुछ अच्छा पठन-पाठन, सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए लोगों का संपर्क, सत्संग प्रकृति का सानिध्य लें, प्रकृति के हर तत्व में वह ताकत है जो आपको जीवंतता से लबरेज कर दे। समस्या है तो समाधान भी होगा।

 फिर हमें यह नहीं कहना पड़ेगा कि लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई। सिर्फ एक लम्हा जिस पर लिखा है “जीत की तैयारी”। हार एक क्षण है पूरी जिंदगी नहीं। जबकि आगे आने वाले किसी लम्हे में प्रयासों से जीत शब्द का दर्ज हो जाना है। और सच मायने में सफलता स्वयं में सकारात्मक बदलाव और दुनिया में सकारात्मक बदलाव ही है। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन आभा वाधवा ने किया। डॉक्टर अरुण सिकरवार ने सभी आमंत्रित अतिथियों का आभार प्रदर्शन किया। सभी अतिथियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।

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