नई दिल्ली

कांग्रेस अध्यक्ष बने तो अशोक गहलोत को मिलेगा कांटों भरा ताज, सत्ता के दो केंद्र, हार का ठीकरा…

नई दिल्ली। कांग्रेस ढाई दशकों के बाद इतिहास दोहराने की ओर है। पार्टी के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि गैर-गांधी अध्यक्ष आने के बाद सत्ता के दो केंद्र होने का संकट भी आ सकता है, जैसा यूपीए सरकार के दौर में देखने को मिला था। भले ही नया अध्यक्ष परिवार से बाहर का होगा, लेकिन सैकड़ों नेताओं की आस्था गांधी फैमिली में ही है। उनके लिए नए नेता को स्वीकार करना मुश्किल होगा और ऐसी स्थिति में वे गांधी परिवार के पीछे ही लग सकते हैं। इससे सत्ता के दो केंद्र बनेंगे और मतभेद भी उभर सकते हैं। यह स्थिति उस कांग्रेस के लिए चिंताजनक होगी, जो 2014 के बाद से लगातार मुश्किल दौर में है और चुनावी हारों का सामना कर रही है।

गांधी परिवार के हाथ से एक बार फिर से अध्यक्ष का पद फैमिली से बाहर के किसी नेता पर जा सकता है। अशोक गहलोत, शशि थरूर जैसे नेता अध्यक्ष पद के चुनाव में उतरने वाले हैं। गांधी परिवार इस तरह अध्यक्ष पद से बेदखल हो जाएगा। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इसके जरिए कांग्रेस पर लगे फैमिली के टैग को हटाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा सामाजिक समीकरण भी पार्टी साध पाएगी। यही नहीं गांधी परिवार के लिए भी यह रोल अच्छा रहेगा क्योंकि उसके खाते में कोई बुराई नहीं आएगी और वह पीछे से पूरी पार्टी को मैनेज भी कर सकेगा। हालांकि इसे लेकर कुछ चिंताएं भी हैं…

कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव 9300 कांग्रेस प्रतिनिधियों द्वारा होना है। इस चुनाव में जीत हासिल करना बड़ी बात नहीं है, लेकिन असली चुनौती पूरी पार्टी का विश्वास हासिल करना और देश भर में खुद को स्थापित करना है। नए अध्यक्ष के लिए पहले दिन से ही यह चुनौती सामने होगी। अशोक गहलोत की ही बात करें तो उनके कई समकक्ष नेता उन्हें वैसा सम्मान शायद ही दें, जैसा गांधी परिवार के लिए उनका रवैया है। अब तक पूरी पार्टी नेहरू-गांधी फैमिली के प्रति आस्था के मुताबिक चलती थी, लेकिन अब नए नेता के आने से यह ढर्रा कैसे बदलेगा, यह देखना होगा। हर कदम पर परिवार और कार्यकर्ताओं को साधना नए अध्यक्ष के लिए चुनौती होगा।

कांग्रेस के नए अध्यक्ष के पास पहली चुनौती होगी कि पद संभालते ही वह देश भर के दौरे करे और कार्यकर्ताओं से कनेक्ट स्थापित करे। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव भी आने वाले हैं और महज 20 महीनों का ही वक्त बचा है। ऐसे में खुद को स्थापित भी करना है और चुनाव की तैयारी में भी जुटना, दोहरी चुनौती जैसा होगा। नए नैरेटिव, नए संगठन के साथ कांग्रेस चुनाव में उतरेगी। यह उसके संगठन के लिए एक परीक्षा जैसा होगा। हालांकि पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि वह जिस हालत में है, उसमें प्रयोग करने के अलावा शायद कोई चारा भी नहीं बचा है।

कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त झेल चुकी है। इसलिए इस बार का इलेक्शन उसके लिए अस्तित्व की जंग जैसा है। एक बड़े चुनावी राणनीतिकार का मानना है कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष की एक्सपायरी डेट एक तरह से पहले से ही फिक्स है। यदि वह 2024 के आम चुनाव में अच्छा रिजल्ट नहीं ला पाता है तो फिर कोई गारंटी नहीं है कि वह पद पर बना ही रहेगा। गांधी परिवार के शीर्ष पर रहते हुए सभी नेता स्टेट लीडरशिप पर या फिर खुद पर जिम्मेदारी डालते रहे हैं। लेकिन परिवार से बाहर के नेता के साथ ऐसा नहीं होगा और सफलता का सेहरा यदि सिर बंधेगा तो असफलता पर सुननी भी पड़ेगी।

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