मध्य प्रदेश

इंदौर में ईसाई समुदाय को दी गई प्रार्थना सभा की मंजूरी रद्द

इंदौर
 इंदौर में प्रशासन ने ईसाई समुदाय को 10 अप्रैल (बुधवार) को विशाल प्रार्थना सभा के आयोजन के लिए दी गई अनुमति को कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए रद्द कर दिया है।

इस सभा में चेन्नई के ईसाई धर्म प्रचारक डॉ. पॉल दिनाकरन मुख्य वक्ता के रूप में करीब 8,000 लोगों को संबोधित करने वाले थे। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि इंदौर लोकसभा क्षेत्र के एक सहायक निर्वाचन अधिकारी ने सात अप्रैल (रविवार) को जारी आदेश में ईसाई समुदाय की प्रार्थना सभा की अनुमति निरस्त कर दी। यह अनुमति पांच अप्रैल को दी गई थी।

आदेश में कहा गया कि प्रार्थना सभा के आयोजन को लेकर हिंदू संगठनों और अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है और इस सिलसिले में इन संगठनों की ओर से शिकायत की गई है।

आदेश में यह भी कहा गया कि इस शिकायत के बाद शहर के तुकोगंज पुलिस थाने के प्रभारी ने कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में रिपोर्ट पेश की है और इस रिपोर्ट से सहमत होते हुए प्रार्थना सभा की अनुमति निरस्त की जाती है।

अलग-अलग हिंदू संगठनों के प्रतिनिधियों की ओर से सहायक निर्वाचन अधिकारी को पांच अप्रैल को भेजी गई शिकायत में आरोप लगाया गया कि इस प्रार्थना सभा का आयोजन हिंदू समुदाय के लोगों को गुमराह करके उन्हें धर्मांतरण के लिए उकसाने के इरादे से किया जा रहा है। शिकायत में कहा गया कि ‘‘इस कार्यक्रम के आयोजन से शहर की शांति भंग होने की पूर्ण आशंका है’’, इसलिए इसकी अनुमति निरस्त की जानी चाहिए।

प्रार्थना सभा की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कार्लटन ने हिंदू संगठनों के ये आरोप सिरे से खारिज किए। उन्होंने कहा,’हमारी प्रार्थना सभा में केवल ईसाई समुदाय के उन 8,000 लोगों को बुलाया गया था जो मध्यप्रदेश में रहते हैं। इस सभा में हम देश की सुख-शांति और सद्भाव के लिए सामूहिक प्रार्थना करने वाले थे।’’

उन्होंने बताया कि यह प्रार्थना सभा ईसाई धर्म प्रचारक डॉ. पॉल दिनाकरन की अगुवाई वाली इकाई ‘नेशनल प्रेयर एंड मिनिस्ट्री अलायंस’ के बैनर तले हो रही थी और खुद दिनाकरन इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होने वाले थे।

कार्लटन ने प्रार्थना सभा की मंजूरी ऐन मौके पर निरस्त किए जाने के प्रशासन के आदेश को चुनौती देते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह याचिका आठ अप्रैल (सोमवार) को खारिज कर दी थी।

एकल पीठ ने कहा कि यह बात सच हो सकती है कि याचिकाकर्ता ने विशुद्ध धार्मिक इरादे से इस प्रार्थना सभा का आयोजन किया हो, लेकिन अन्य धर्म संगठनों द्वारा जताई गई आपत्तियों के मद्देनजर प्रतिवादियों (राज्य सरकार) द्वारा कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर व्यक्त चिंता को भी बेबुनियाद नहीं कहा जा सकता।

 

 

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