छत्तीसगढ़बिलासपुर

सैकड़ों ट्रेनें रद्द कर कोयला ढुलाई करन का फैसला, अंडरब्रिज के ठीक बाद क्रॉसिंग, यह अजब नमूना है रेलवे के निर्माण का …

बिलासपुर । अक्टूबर 2011 में तारबाहर क्रॉसिंग पर एक हादसा हुआ। 18 लोगों की जान चली गई। अगल-बगल गुजरतीं मालगाड़ियों ने इन लोगों को भेड़-बकरियों की तरह काट डाला। इस भयानक हादसे के बाद क्रॉसिंग पर अंडरब्रिज बनाने की पहल हुई। अंडरब्रिज बना भी। लेकिन जैसा बना, वह शायद देशभर में एक अजीब नमूने के तौर पर देखा जाएगा। अंडरब्रिज खत्म होते ही सामने फिर एक क्रॉसिंग। रह-रहकर गुजरतीं मालगाड़ियां। बाइक झुकाकर या पैदल गुजरते, आते-जाते लोग। यानी वैसा ही खतरा। दो दिन पहले की ही बात है। अंडरब्रिज से निकलकर क्रॉसिंग पर एक एंबुलेंस आ फंसी। सुस्त चाल में मालगाड़ी के गुजरने तक इसमें प्रसूता कराहती बैठी रही।

हमारे देश में सड़क से वीवीआईपी के गुजरने पर सैकड़ों-हजारों गाड़ियां रोक दी जाती हैं। ऐसे में इस तरह के अजीबोगरीब क्रॉसिंग पर ऐसी इमरजेंसी की स्थिति में मालगाड़ी रोकने की छूट भी दे ही देनी चाहिए। इस क्रॉसिंग से हर रोज 12 गांवों, शहर के 3 वार्डों के लोग और सैकड़ों उद्योगों के कर्मचारी गुजरते हैं। उनकी इस त्रासदी से शायद जिम्मेदार अफसरों को कोई सरोकार नहीं। ठीक ऐसी ही हालत है एक और व्यस्त मार्ग, अमेरी क्रॉसिंग की। यहां अंडरब्रिज की मंजूरी के दावे-वादे सुनते ही एक दशक बीत गया।

पिछले साल अप्रैल में लोकसभा में रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि देशभर में जहां अंडरब्रिज हैं, उन्हें ओवरब्रिज में बदला जा रहा है, क्योंकि अंडरब्रिज में पानी भरने जैसी समस्याएं आ रही हैं। रेलवे का एक ओवरब्रिज यानी कम से कम 10 साल का प्रोजेक्ट।

बिलासपुर का अनुभव तो यही कहता है। चाहे वह उसलापुर हो, तिफरा हो या सिरगिट्‌टी का ओवरब्रिज। हमारे संभाग में ही ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं, जिन्हें पूरा करने में रेलवे को एक दशक या इससे भी अधिक समय लग गया और कई अब भी अधूरे हैं।

23 हजार करोड़ रुपए सालाना कमाने वाले बिलासपुर जोन को कोयला ढुलाई के लिए सैकड़ों ट्रेनें रद्द करने का फैसला लेने में 24 घंटे भी नहीं लगते। लेकिन इसके ठीक विपरीत जिन प्रोजेक्ट से आमजन का हित जुड़ा हो, उन्हें पूरा करने में दशक से अधिक वक्त लग जाना किसी को समझ न आया। ब्रिज बनकर तैयार रहता है, लेकिन गर्डर चढ़ाने में पांच-सात साल लग जाते हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए रेलवे के अफसरों को चाहिए कि वे जनहित के प्रोजेक्ट और गतिविधियों पर फोकस बढ़ाएं, बजाय लदान और ढुलाई में कीर्तिमान बनाने के।

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