लेखक की कलम से

अब तो आ जाईये…

हसरत है दिल में तुम्हें पाने की,

कुछ पल तेरी ज़ुलफ़ों के साए में बिताने की। 

तेरी निगाहें-जमाल जो पड़ जाए मुझ पर,

बीमारे-इश्क को करार आ जाए। 

ए सादगी-ए-हुस्न की मलिका,

ज़रा पलकें तो उठाईये,

तलबग़ार है तुम्हारे नैनों की मदिरा के,

दो बूँद ही सही ग़र मिल जाए तो दिले-बेताबी को करार आ जाए।

बढ़ रही है दिले-बेताबी,

जुनूं की हद तक चाहेंगे तुझे हम।

रफ़ीक ना सही रक़ीब तो ना बनिए जाना। शब़े-इन्तज़ार में तड़फ़ रहे हैं हम,

यूँ जब्र ना किजिए,

कुछ तो रहम किजिए,

इक बार ही सही शबे-माहताब बन कर आ जाईये,    

कहीं दमें-आखिर भी ना निकल जाए……आ जाईये……अब तो आ जाईये।

©प्रेम बजाज, यमुनानगर

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