लेखक की कलम से

कोश्यारी का कटाक्ष …

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपने शिवसैनिक मुख्यमंत्री उद्धव बाल ठाकरे को राय दी। उद्धव उसे गाली मान बैठे। पलटवार कर दिया। शिष्ट तथा अशिष्ट के बीचवाली बारीक रेखा मिटा डाली।

 

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से पूछा था कि “आप तो सेक्युलर बन गए। इस शब्द से कभी आपको घिन लगती थी।”

 

निजी मित्रता के कारण मुझे कोश्यारी की यह उक्ति कुछ अचरजभरी लगी।

 

कुमायूं का यह भाजपायी राजपूत अंग्रेजी भाषा का पत्रकार (संपादक) रहा। उन्होंने विलियम शेक्सपियर को जरूर पढ़ा होगा कि “दूसरे को अपने कान दो, आवाज कभी नहीं।” वह भी उद्धव के लिए जो अपने पिता बाल ठाकरे की भांति उद्दण्ड सियासत के लिए जाने जाते हैं। घृणा फैलाना उनका सुरूर है, गुरूर भी।

 

कोश्यारी को राज्य सरकार के आचरण पर क्रोध आना सही था।

 

मुंबई में ठाकरे ने मदिरालयों पर आठ माह पुराना लॉकडाउन ख़त्म कर दिया। मंदिरों पर नहीं।

 

क्यों ?

 

राज्यपाल को संदेह हुआ कि मुख्यमंत्री को इल्हाम हो रहा है कि देव-दर्शन टालते रहो, दारू पीना नहीं। हिन्दू ह्रदय-सम्राट कहलाने वाले बाप बाल ठाकरे के बेटे को लगा कि यह भाजपायी राज्यपाल उन्हें हिंदुत्व सिखा रहा है।

 

शरद पवार, जिनकी कांग्रेस पार्टी इस गठजोड़ में शामिल हैं, को लगा होगा कि “सेक्युलर” संविधान की शपथ लेने वाले राज्यपाल कुछ ज्यादा हिंदूवादी हो रहे हैं। आपस में निपटने हेतु सभी सक्षम हैं। पर उद्धव ठाकरे चिढ़कर अपना मौलिक रंगरूप नहीं बदल सकते।

 

शिवसेना दशकों से वोट मांगती रही हिन्दूवादी सरकार के नाम पर। यह पार्टी-निशान (गुर्राते शेर) की गेरुई धारियों को नहीं मिटा सकते हैं।

 

सरकार बनी थी हिन्दू वोट पर। अब याराना मुसलमानों से ?

 

इसके दस्तावेजी प्रमाणों पर गौर करें।

 

ठाकरे की राय थी, पार्टी पत्रिका “सामना” में, कि भारत के मुसलमानों के वोट के अधिकार को छीन लो। उन्हें इस्लामी पाकिस्तान रवाना कर दो।

 

दो अत्यंत गंभीर मांगें ठाकरे ने भारत सरकार के सामने पेश की थी।

 

पहली थी कि मुसलमानों की नागरिकता और मताधिकार निरस्त कर दो। पत्रिका “सामना” (13 अप्रैल 2015)।

 

दूसरी मांग थी कि भारतीय मुस्लिम पुरुषों की जबरन नसबंदी कर दो (4 सितम्बर 2018)।

 

यह तो संजय गाँधी के चार-सूत्री कार्यक्रम (1975-77) से भी कठोर होता। पार्टी-पत्रिका में कई खबरें छपी हैं, जैसे कि बुरका पर पाबन्दी, मदरसों में पंथनिरपेक्ष शिक्षा, बकरीद पर बलि को अवैध (24 जुलाई 2020) करार देना।

 

उद्धव ठाकरे के मुस्लिम-विरोधी तेवर कभी अधिक तीखे हो गए थे जब गत आम चुनाम में मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन महाराष्ट्र विधान सभा में दो सीटें जीत गई थी। तेलंगाना तक सीमित यह पार्टी अब पुराने निजाम प्रान्त के बाहर अपना प्रभाव बढ़ा रही है। बाल ठाकरे ने इसका विरोध किया था। उनके आत्मज अपने सेक्युलर बनने के जुनून में इस निजामी पार्टी से पींगे बढ़ा रहे हैं ।

 

यहाँ याद रखना होगा कि सीबीआई अदालत में हाल ही में बाबरी ढांचा ढहाने के आरोप में आडवाणी, जोशी, उमा भारती आदि बरी कर दिए गए। पर कोई भी शिवसैनिक अभियुक्त नहीं बनाया गया। जबकि खुले आम बाल ठाकरे ने ऐलान किया था कि गुम्बद शिव सैनिकों ने गिराया है। मगर एक भी शिवसैनिक सीना तानकर इस हिंदूवादी दावे को सीबीआई कोर्ट में दुहराने नहीं पेश हुआ।

 

उधर शरद पवार यदि कोश्यारी पर, उनकी राय वाले मसले पर हमलावर हुए हैं, तो इसका आधार है। अगर सेक्युलर शरद पवार की मदद से धर्म-प्रधान शिव सेना के अध्यक्ष उद्धव मुख्यमंत्री बन गये, तो एक रुचिकर तथ्य को याद करना होगा।

 

इस सारे माजरे की शिल्पकार सुप्रिया सुले, शरद पवार की पुत्री हैं। उनके जेठ हैं, उद्धव ठाकरे। अर्थात शरद पवार के पाहुना (जमाईराजा) सदानंद सुले जी बाल ठाकरे के सगे भगना (भांजे) हैं। उनकी भगिनी सुधा सुले के समधी ही पवार हैं। मामला सब घरेलू है। इसीलिय सदन के भीतर अथवा बाहर शरद पवार ने दामाद जी राबर्ट वाड्रा पर कभी टीका टिप्पणी नहीं की।

 

अब इसी सन्दर्भ में गौर कर लें महाराष्ट्र विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर पड़े वोटों के विश्लेषण पर।

 

अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के विधायक कट्टर इस्लामिस्ट अबू आसिम काजमी और उनके सहयोगी ने शिवसेना के पक्ष में वोट दिया। ओवैसी की मुस्लिम मजलिसे इत्तेहाद के विधायकों ने शिवसेना का विरोध नहीं किया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट सदस्य कामरेड विनोद निकोले द्वारा समर्थन न देने का कारण था कि नेक और प्रतिष्ठित कम्युनिस्ट श्रमिक नेता कृष्ण देसाई की हत्या शिव सैनिकों ने की थी।

 

हालांकि ऐसी ही धमकी शिवसेना ने कांग्रेसी को भी कभी दी थी कि राहुल गाँधी के महाराष्ट्र प्रवेश पर उनकी दुर्गति की जाएगी। मगर तब कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने (2010) पुलिस लगाकर ठाकरे के सैनिकों को ठिकाने लगा दिया था। खाकी वर्दी दीखते ही ठाकरे और शिव सैनिकों को वर्षों से झुरझुरी होती रही।

 

अतः कोश्यारी ने बात तो सटीक और ठोस कही थी।

 

पिछले दशकों तक ठाकरे बाप–बेटे मराठी मानुष को हिंदुत्व के नाम पर लुभा रहे थे।

 

अतः अब गुहार लगाना होगा : “जागो हिन्दू, नक्कालों से सावधान।”

 

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

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