लेखक की कलम से

दिशाहीन भीड़ …

खौफनाक मंजर समेटे

सरपट दौड़ती भागती वो भीड़…

बस बर्बादी का निशाना लिये

चारों तरफ हाहाकार मचाती वो भीड़ …

जो भी आया सामने

सब खत्म करती वो भीड़ …

मानवता की दुश्मन क्या बच्चे क्या बूढे

सबको रोंदती वो भीड़….

कभी वाहन  कभी जिन्दा इन्सान

बेदर्दी से जलाती वो भीड़…

नवसृजन करती माँ के पेट पर

लात मारती वो नामरदों की भीड़…

आता जैसै खौफनाक तूफान

जिसके गुजरते ही

हो जाता सब शमशान

जिसमें न दया न अंकुश

निरंकुश हो मानवता को कुचलती

गिद्दों की वो भीड़ …

धार्मिक उन्माद लिये

धरती को उजडा चमन बनाती वो भीड़…

इस भीड का न होता कोई इंसाफ

बेखौफ़ सी कानून की धज्जियां उडाती वो भीड़…

हाथों में रक्तरंजित शस्त्र लिये

दुनिया में अपना धार्मिक उन्माद फैलायी वो भीड़….

शुन्य मस्तिष्क सी ,

आदेश से चलती वो भीड़…

गुनाहगार होते हुये भी

बेगुनाह वो भीड़ …..

अंधी, गूंगी, बहरी

चीखों भरी वो दिशाहीन भीड़ ….

©रजनी चतुर्वेदी, बीना मध्य प्रदेश          

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