लेखक की कलम से

अंकुरण की प्रतीक्षा …

ईश्वरीय कृत्य है मानवता के लिए, संबल प्रदान करना,

नकारात्मकता से झुलसे किसी मष्तिष्क को सकारात्मक विचारों से ओतप्रोत कर,

क्योंकि, कभी कभी अतिशय पीड़ा की स्थिति में भूल जाती है  सामर्थ्य,

सशंकित हो उठती है योग्यता और कलात्मकता,

विचारों का घुमड़ना होता है इतना प्रबल, कि उसके भंवर से उत्पन्न हताशा,

खा जाती है हमसे हमें,

कला मांगती है प्रदर्शन अस्तित्व हेतु,

और व्यंग्य बाणों से आहत मनो मस्तिष्क ह,

हिम्मत ही नहीं जुटा पाता प्रदर्शन के लिए,

दम तोड़ता हुनर चाट जाता है देह, दिल और दिमाग,

होता है दुष्कर,

बंजर भूमि में दबा कर बीज,

उसके अंकुरण की प्रतीक्षा,

पर अनवरत नि स्वार्थ भाव से,

पवित्र आत्माओं द्वारा किया गया अथक परिश्रम,

विवश कर देता है,

कृतकृत्य हो उठती है धरणी,

नन्हें नाजु़क पौधे को,

मजबूती से सिर उठाये,

उसका सीना फाड़ बाहर आते देखकर ||

 

©विभा मित्तल, हाथरस उत्तरप्रदेश

Back to top button