लेखक की कलम से

मनुष्य को ही जानवरों का ध्यान रखना होगा …

इस धरती पर मनुष्य के अलावा बहुत सारे लोग रहते हैं। कुछ पशु -पक्षी, जीव -जंतु, पेड़ -पौधे। इनमें से कुछ सामाजिक और कुछ जंगली हैं। समाजिक वे है जिन्हें हम अनादिकाल से अपना लिए हैं, आज वे सब मनुष्य के साथ रहते हैं। इनके आपसी रिश्ते इतने घनिष्ठ है कि, ये एक दूसरे के बिना एक पल नहीं रह सकते हैं लेकिन एक ऐसा दौर आता है जब ये रिश्ते पल भर में बिखर जाते हैं, शायद ये आभासी रिश्ते थे जो अनादिकाल से एक दूसरे के कंधों पर टिके हुए थे। अभी तक हमने फिल्मों में आभासी दुनिया वाले रिश्ते देखते आ रहे थे लेकिन वास्तविक रिश्ते का एहसास एक फ़िल्मी गाने ने करा दिया “कौन सुनेगा, किसको सुनाएं, इसलिए चुप रहते हैं… “.इस गीत के बोल आज देश-दुनिया के बेजुबान पशुओं-पक्षियों पर पूरी तरह से सटिक बैठता है।

आज जब भारत -दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रहा है। तो एक तरफ लॉकडाउन के चलते सब लोग अपने घरों में अपने परिवारों के साथ सुख- दुःख में एक दूसरे का साथ दे रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बेजुबान पशुओं-पक्षियों का कोई हाल चाल पूछने वाला दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है।पशु -पक्षियां भी मानव समाज का एक महत्वपूर्ण अंश होते हैं। पशुओं-पक्षियों की निर्भता मानव पर होती है।

आज बड़े- बड़े शहरों में बेजुबान प्राणी भूख से तड़प रहे हैं, क्योंकि इनकी समस्या कौन सुने ये अपनी समस्या किस के पास ले कर जाएं। चिलचिलाती धूप में गली, मोहल्ले, सड़कों पर भूखे-प्यासे घूम रहे हैं। मानव आज कितना स्वार्थी हो चला है दुधारू पशुओं से बनने वाले दही, पनीर, खोवा एवं अन्य खाद्य पदार्थों का सेवन हर रोज करता है लेकिन तनिक भी दया नहीं रहा आज इनके लिए।

आज जुबान वाले लोग अपने घरों में लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही घरों में भोजन का भंडारण कर लिए, ताकि बंद के दौरान अपने तथा अपने घर वालों की भूख मिटा सकें। मगर ये बिना जुबान वाले पशुओं के बारे में किसी ने एक बार भी नहीं सोचा कि इनकी भूख आखिर कैसे मिटेगी। आज लोग कितने स्वार्थी हैं इस बात का पता हमें जब चलता है जब हम किसी समस्या से जूझ रहे होते हैं। जब तक पशु दूध दे तो घरों की शोभा होती है दूध देना बंद कर दिया तो सड़कों पर छोड़ देते हैं।

आज गाय, भैस, कुत्ता, बिल्लियों के साथ-साथ पक्षियां भूख से ब्याकुल हो रहे हैं। ये अपनी भूख मिटाने के लिए यूं ही विचरण करते रहते हैं, इन्हें कोई खिलाने वाला नहीं है। भूख से बिलबिलाते पशुओं की आवाज कोई बनने को तैयार नहीं है। हमें इस बात का पूरा अंदाज हो गया कि इस आभासी दुनिया में बुरे वक्त आने पर अपने भाई बंधु साथ नहीं देते है। ये तो फील हाल पशुओं -पक्षियों की बात है। पशुओं -पक्षियों उपयोगिता के अनुसा ही उनकी देख भाल होती है। इस वक्त के हालात से स्पष्ट हो गया है। इन पशुओं -पक्षियोंके चारे, पानी उनकी देखभाल के लिए न तो सरकार आगे आ रही है और न ही कोई गैर सरकारी संगठन। ऐसे समय में अगर भूख से तड़फ कर पशुओं -पक्षियों की मौत होने लगेगी तो किसी अन्य बीमारी के फैलने की आशंका प्रबल हो जाएगी। जहां एक तड़फ कोरोना जैसे भयानक महामारी से से बचने के लिए फिजिकल डिस्टेंशिंग की बात की जा रही है वहीं।

वही दूसरी तरफ पशुओं -पक्षियों के कहीं मृत अवस्था में उठाने और हटाने के लिए फिजिकल डिस्टेंशिंग के सारे नियम ताख पर चले जाएंगे। खुदा न करे ऐसा मंजर भी देखने को मिले जिस से समस्या और जटिल हो जाए।

अगर समाज के निर्माण में पशु -पक्षिया, पेड़ -पौधे, नदी झरने न होतो तो समाज अधूरा सा लगता है। ये सब प्रकृति की सुंदरता को भी बढ़ाते हैं, साथ ही मनुष्य के जीवन में चार चांद लगाते हैं। इस लिए हमें अपने साथ पशु -पक्षियों का पूरा ख्याल रखना चाहिए।

©अजय प्रताप तिवारी, इलाहाबाद

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