लेखक की कलम से

फुर्सत के पल …

आओ फिर से सोचें हम,
एक पल खुद के बारे में।
क्यों उजड़ी सब खुशियां,
स्वार्थ के इस गलियारे में।
क्या छूटा, क्या खो गया,
अहम के बजते नगाड़े में।
आओ फिर से साथ चलें,
इस मौसम के नज़ारे में।
वो प्रेम कहां है खो गया,
क्रोध के दहकते अंगारे में।
थोड़ी फुर्सत सी निकालें,
तलाशें प्रेम, दिल बंजारे में।
अर्चना त्यागी जोधपुर राजस्थान
मौलिक एवं स्वरचित।

 

©अर्चना त्यागी, जोधपुर

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