लेखक की कलम से

प्रकृति और मानव …

#वृक्ष से मैत्री

आज सोचा मैंने,
कुछ वृक्ष से वार्ता कर लू।
बहुत देखी मानव की मित्रता,
आज वृक्ष से दोस्ती कर लूं।
चल दी मैं एक अद्भुत सफर पर,
जहां कुछ मुझे सीखना था,
जुडना था मुझे प्रकृति से,
बहुत कुछ भी सुनना था।
बैठी मैं एक वृक्ष की छाँव में,
कुछ नैनो को बंद किया।
किया आवाहन वृक्ष देव का,
सर्वप्रथम प्रणाम किया,
एक अद्भुत सी वाणी ने भी,
ये प्रणाम स्वीकार किया।
बोला,”हम तो मित्र तुम्हारे,
सदा सदा से ही तो है,
देते अविरल प्रेम की शिक्षा,
पर नादान तू तो है।
प्रकृति तेरी आश्रय स्थली,
तू खोजे इसे तकनीकी में,
प्रकृति से ही तू बना,
नष्ट भी करता प्रकृति को।
क्या कुछ हम तुझे देते,
सर्वस्व ही यहाँ तेरा है,
प्रेम भाव से जरा तो देखो,
हर वृक्ष मित्र तेरा है।
प्राण ऊर्जा संग तुझे,
हम सर्वस्व देते हैं,
तेरी हर विपदा भी,
हम सहर्ष हर लेते हैं।
देख सुकून कितना मिलता है,
तुझे हमारी छाँव में,
राहत का हर पल होता है,
प्रकृति माँ की छाँव में।”
निःशब्द थी मैं,
और सुनती थी,
मित्रता की गहनता आज,
मेरे अंतस में थी,
बहुत कुछ मैंने पाया था,
इस अटूट मित्रता में,
सीख गई थी आज मैं जीना,
कुछ सत्य और निष्ठा में।।

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी            

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