कहाँ जा छिपा है …
“कहाँ जा छिपा है ये तो बता ??
मैं ढ़ूढ़ता रहा युगों से ……….।।
हवाओं से पूछा-दिशाओं से पूछा –
पूछता रहा मैं हर किसी से …….।।
न जाने कितने कल्पों में खोया –
न जाने कितनी योनियों में भटकता रहा मैं सभी में …..।।
कहाँ जा छिपा है ये तो बता ..??
मैं ढ़ूढ़ता रहा युगों से …………
चारों दिशाओं ने हंस कर कहा –
वो तो छिपा है हम ही में …..।
खुद ही ने बताया वो कण-कण में समाया –
पूछ ले ये करिश्मा उसी से ……..।।
कहाँ जा छिपा ………….??
मैं ढ़ूढ़ता रहा …………….।।
सभी ने कहा उसने मुझको बनाया –
पूछ ले अब तू उन्हीं से …………..।
पर किसी ने न देखा वह रहता कहाँ है –
आसमां में मिला न ज़मीं पे ………..।।
कहाँ जा छिपा…………..??
मैं ढ़ूढ़ता रहा………………।।
तेरा-मेरा माया का घेरा –
जीव फंसा है उसी में …..।
मैं तो सुलभ भक्तों का भक्त –
रहता भक्तों के ही बस में ….।।
कहाँ जा छिपा……
मैं ढ़ूढ़ता रहा ……..
पुकारो तो सही कहाँ मैं नहीं –
हर साँस मेरी गवाह है तेरी ….।।
जरा परदा हटा और देखकर ये बता –
कहाँ ढ़ूढ़ रहा था युगों से ………..??
कहाँ जा छिपा है ये तो बता –
मैं ढूंढ़ता रहा युगों से ……….।। ”
©अर्जुन कु. चक, गुरुग्राम, हरियाणा
परिचय : लेखन कार्य, काव्य सग्रंह “स्वयं-प्रवाह”, विभिन्न मासिक व त्रैमासिक पत्रिकाओं तथा दैनिक समाचारपत्रों में रचनायें प्रकाशित होती रहतीं है।