लेखक की कलम से

इस महामारी ने साहित्य साधना और सृजन की ओर किया प्रेरित – लक्ष्मीनारायण पयोधि

बारिशें मन पर हों या जमीं पर सुखद होती हैं। यही सच किया, वैश्विक महामारी जनित निराशा और अवसाद की बदली को हटाकर रचनाकारों ने भीगे सावन को रचना में पिरो दिया, बारिशों के गीत गाए।

अवसर था आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन द्वारा आयोजित ” आरंभ – भीगा सावन ” आनलाइन काव्य गोष्ठी का।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध बॉलीवुड गीतकार इब्राहिम अश्क, मुंबई द्वारा की गई। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा;-सभी रचनाकारों ने अपनी कलम को सावन की अनुभूतियों में डुबोकर अपने इस समय का बेहतरीन सदुपयोग करके उत्कृष्ट प्रस्तुतियां दी हैं।

 

वही मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मीनारायण पयोधि ने कहा ;-वैश्विक महामारी के इस काल में सकारात्मक परिणाम स्वरूप एकांतवास ने कला साधकों को, साहित्य सर्जकों को और अधिक साधना और उत्कृष्ट सृजन

की तरफ प्रेरित किया है और यही आज इस ऑनलाइन गोष्ठी की प्रभावी प्रस्तुति में दिखाई पड़ा, जहां रचनाकारों ने सावन के विभिन्न रूपों को अपनी रचनाओं में खूबसूरती से पिरो कर वातावरण रसमय बना दिया।

 

 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति रही एडिशनल कलेक्टर, भोपाल शीला दाहिमा ने अपने वक्तव्य में कहा;- आरंभ की है भीगा सावन काव्य गोष्ठी बहुत रूचिकर लगी।

सभी रचनाकारों ने सावन को अपने नजरिए से देखा और सावन एक संदेश देता है कि आ गया सावन का मौसम आ गया।

तुम भीग जाओ न प्यार की बारिशों में।

 

संस्था अध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजिका अनुपमा अनुश्री ने सावन की अठखेलियां इस तरह बयान की ;- मन को खींचे घुमड़ते बादलों का शोर।

धरती से अंबर तक, बूंदों की झिलमिलाती डोर।।

 

सभी प्रमुख रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में बारिश,  चमचमाती बरसती बूंदों,स्याह घटाओं और लुभावनी प्रकृति के सुंदर रंग बिखेर के सभी को हर्षित किया और सभी के मन इस आनंद वर्षा में झूम उठे।

 

 

तन भी भीगे मन भी भीगे

भीगे सब कुछ सावन में

मोर – पपीहा नाचे सम्मुख

फूल खिलें हर आंगन में।

@डॉ.अमित मालवीय “हर्ष”, भोपाल

 

भीगा भीगा सा सावन, पीहू राग सुना रहा है।

@वंदना पुणतांबेकर, इंदौर

 

बड़े भोर सज आया सावन।

पहन नवल ॠतु के सुंदर परिधान।।

@उषा सोनी

 

भीगा, भीगा सा ये सावन,

लगे मधुर मन भावन है।@श्यामा गुप्ता भोपाल

 

ओ सावन बिजुरिया का मितवा रे,

चम चम चमकें बदरवा रे।

@शोभा ठाकुर, भोपाल

 

बरखा की बूंदें छन छन सी बरसे,

शबनम के मोती सी फूलों पर बिखरे।

@मनीषा व्यास, इंदौर

 

रिमझिम रिमझिम बरसे सावन।

मन सबके लागे हरषावन।।

@बिंदु त्रिपाठी

 

रिमझिम रिमझिम पड़े फुहार।

देखो आ गई बरखा बहार।।

@शेफालिका श्रीवास्तव

 

तीज सावनी, हाथ में मेहंदी, पैर महावर, पैजनिया।

पात पात में मधु मुस्कानें महक उठी उपवन में।।

@कुलतार कौर कक्कड़

कार्यक्रम का संचालन मनीषा व्यास ने किया।

  दिल्ली बुलेटिन के लिए भोपाल से अनुपमा अनुश्री की रपट                          

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