लेखक की कलम से

इश्क़ की बातें …

तू समझता रहा जिसे झूठी बातें,

मैंने दर्द में काटी,जग जग राते।

 

तड़पते बचपन की अनकही बाते,

एक माँ की आँखों की बरसाते।

 

तू कहता रहा इश्क़ की बाते,

इश्क़ जी कर थी अश्क बरसाते।

 

इश्क़ कब तोलता है सच और झूठ,

ये इश्क़ हैं या मोलभाव की बाते।

 

इश्क़ तेरा केवल मुकम्मल मिलने से,

मैंने तो रूह से रूह की करी मुलाकाते।

 

झूठ का गुनाहगार वो बनाता रहा मुझे

मैंने कर्तव्यों को  ही समर्पित की राते।

 

चर्चा नही करती,मैं दर्द का समाज के,

मैंने समाज को बदलने की ,करी शुरुआते।

 

लगता होगा तुझे,शोहरत प्यारी है मुझे,

मैंने कर्तव्यों पर की कुर्बान सब बातें।

 

न चाहिए मुझे कोई रहनुमा मेरा,

मैंने तो खुदा से कर ली है मुलाकाते।

 

हर दर्द अब जी जी कर मैं अब वैदेही,

दर्द जहाँ का हरने की लायी सौगाते।

 

स्वीकार कर हर नफरत की बाते,

मिटाऊंगी की धरा के दर्द की राते।

 

न करती मैं हवाओ से भी बाते,

मैंने मौन को सुनने की,करी शुरुआते।।

 

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी           

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