ऐसा क्यों होता हैं …
हां सच में ही…
मैंने मौत को बहुत पास देखा
मैंने माँ को मरते हुए देखा,
हिल गई थी मेरे जीवन की रेखा,
अनाथ सी हुई जा रही थी मैं,
वह अद्भुत और डरावने से क्षण,
बहुत दुख भरे थे वो पल,
सचमुच प्रलयंकारी था वो क्षण।
हां सच में ही…
मुझे आभास करा देता है वह क्षण,
जीवन की लघुता का, नश्वरता का,
जीवन की क्षणिकता का,
अक्षुण्ण क्षणभंगुरता का,
और देखते देखते ही माँ से विछोह होने का,
रूक गयी थी साँसें, एक क्षण के लिए,
लगा जैसे जीवन रुक सा गया मेरा।
हां सच में ही…
टूट गए थे सारे सपने, माँ को जाते देख
हर तरफ धुंधला सा मौसम जैसे हो गया था,
लगा जैसे बिल्कुल दूर हो चुका था,
जीवन की नाव का किनारा,
लगा जैसे सब कुछ हाथ से निकल ही चुका था ,
कि अचानक सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए,
जीवन के अवशेष मौत ने उगल दिए।
हां सच में ही…
माँ स्मरण हो आयी आज, पुनः वह स्नेहमयी गोद,
और बरगद की साया के समान मातृशक्ति का साया,
स्मरण हो आयी पुरानी सभी साथ बितायी बातें
स्मरित हो आयीं माँ के प्यार दुलार की सब रातें,
यादों ने पुनः एक बार झकझोर दिया अंतस्तल को,
कि माँ आज साथ नही है, न जाने क्यों..?
ऐसा होता हैं न जाने क्यों…?
क्यों…?
©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद