लेखक की कलम से
मेरी तलाश …
मैं तो नन्हा-सा बालक हूँ,
मम्मी का दुलारा और पापा का प्यारा हूँ,
दीदी मुझे बहुत है प्यार करती,
दादा-दादी का तो नन्दलाला हूँ।
लेकिन न जाने कहाँ से यह बोझ आया
खेलना कूदना भी मैं भूल गया।
रास्ते पर मारा फिरता हूँ
विद्यालय में पाँव रखने को तरसता हूँ।
जाने क्या मजबूरी आई
हर वक़्त जो मुझे रुलाए।
खाने को घर पर अब भोजन नहीं
होटलो में काम करने मैं बचपन कहीं छोड़ आया।
जिस वक़्त सपने देखना था मुझे
उस समय अब रात को थके हारे घर लौटता हूँ। गुम हो गया मैं कहीं,
अब तो घर में चूल्हा जले कैसे यह सोचता हूँ। माँ है बेबहस, लाचार पिता हैं
बिस्तर पर पड़े अब सिर्फ लाचारी मेरी उन्हें दिखती है।
जिम्मेदारी के बीच फिर भी किसी कोने में बचपन मुझे ढूंढता है।
क्या खबर इस जहां को
क्यों मैं यहाँ खड़ा हूँ,
टकटकी लगाए खुदको ही तो मैं ढूंढ़ता हूँ।।
©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा