नई दिल्ली

फेसबुक बंद करेगी चेहरों को पहचानना, मिटा देगी अरबों लोगों के फेसप्रिंट …

नई दिल्ली । फेसबुक की नई मालिकाना कंपनी मेटा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वाइस प्रेसिडेंट जेरोम पेसेंती ने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा है, “यह बदलाव फेशियल रिकग्निशन तकनीक के इतिहास में उसके इस्तेमाल में आ रहे सबसे बड़े बदलाव का प्रतिनिधित्व करेगा” उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी इस तकनीक के सकारात्मक उपयोग को “समाज में बढ़ती चिंताओं” से तुलना कर रही है.

फेसबुक ने कहा है कि वो चेहरा पहचानने वाली प्रणाली को बंद कर देगी और एक अरब लोगों के फेसप्रिंट को मिटा देगी. कंपनी ने यह घोषणा ऐसे समय पर की है जब इस तकनीक और सरकारों द्वारा इसके दुरूपयोग को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.

उन्होंने विशेष रूप से नियामकों के अभी तक स्पष्ट नियम दे पाने में असमर्थता का भी जिक्र किया. फेसबुक को रोजाना सक्रिय रूप से इस्तेमाल करने वालों में से एक तिहाई से भी ज्यादा, यानी 64 करोड़, लोगों ने कंपनी के सिस्टम को उनका चेहरा पहचानने की अनुमति दी हुई है. एक अच्छा उदाहरण कंपनी ने फेशियल रेकग्निशन को एक दशक से भी ज्यादा पहले लागू किया था लेकिन जैसे जैसे अदालतों और नियामकों की छानबीन बढ़ती गई कंपनी ने धीरे धीरे लोगों के लिए इससे बाहर निकल जाना आसान बना दिया.

2019 में फेसबुक ने तस्वीरों में अपने आप लोगों को पहचानना और उन्हें “टैग” करने का सुझाव देना बंद कर दिया. इस सेवा को डिफॉल्ट बनाने की जगह उसने इस्तेमाल करने वालों से इसमें शामिल होने या ना होने का फैसला खुद लेने के लिए कहा. नोट्रेडैम विश्वविद्यालय में टेक्नोलॉजी एथिक्स की प्रोफेसर क्रिस्टन मार्टिन कहती हैं कि फेसबुक का यह फैसला “कंपनी और यूजर दोनों के लिए अच्छे फैसले लेने” की कोशिशों का एक अच्छा उदाहरण है

मार्टिन ने यह भी कहा कि यह कदम जनता और नियामक संस्थाओं के दबाव की शक्ति को भी दिखता है. कंपनी अब लोगों को पहचानने के नए तरीके खोजने की कोशिश कर रही है. पेसेंती ने ब्लॉग में आगे लिखा, “फेशियल रेकग्निशन विशेष रूप से तब मूल्यवान हो सकता है जब यह तकनीक सिर्फ व्यक्ति के निजी उपकरण पर काम करे” खतरनाक टेक्नोलॉजी उन्होंने लिखा, “इस तरीके में चेहरा के डाटा का किसी बाहरी सर्वर से कोई संबंध नहीं होता है और आजकल स्मार्टफोन को अनलॉक करने के लिए इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है” एप्पल इसी तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अपने फेस आईडी सिस्टम के लिए करती है.

शोधकर्ता और निजता एक्टिविस्ट कई सालों से चेहरे को स्कैन करने वाले सॉफ्टवेयर का टेक उद्योग द्वारा इस्तेमाल को लेकर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना रहा है कि कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि यह टेक्नोलॉजी नस्ल, लिंग या उम्र को लेकर ठीक से काम नहीं करती है. एक चिंता यह रही है कि यह गहरे रंग वाले लोगों की पहचानने में गलती करती है.

अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के नेथन वेस्लर कहते हैं कि एक और समस्या यह है कि इसका इस्तेमाल करने के लिए कंपनियों ने बहुत सारे लोगों के अलग अलग फेसप्रिंट बनाए हैं और ऐसा अक्सर बिना उनकी इजाजत के और कुछ इस तरह से किया है कि उनका इस्तेमाल करने लोगों पर नजर रखी जा सकती है. नेथन की संस्था फेसबुक और दूसरी कंपनियों से इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर लड़ चुकी है. कंपनी के नए कदम को लेकर वो कहते हैं, “यह इस बात का बहुत बड़ा स्वीकरण है कि यह टेक्नोलॉजी अन्तर्निहित रूप से खतरनाक है”.

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