बिलासपुर

कानन में नहीं थम रहा वन्य प्राणियों की मौत का सिलसिला, तीन दिन पहले घायल तेंदुए का किया गया था रेस्क्यू, इन्फेक्शन से चली गई जान …

बिलासपुर । शहर से महज 13 किलोमीटर दूर तखतपुर क्षेत्र के ग्राम बिनौरी ग्राम में तेंदुआ जंगल से भटक कर आ गया था। ग्रामीणों की सूचना पर वन विभाग की टीम ने करीब चार घंटे की मशक्कत के बाद उसे रेस्क्यू किया था। इससे तेंदुआ घायल हो गया था और उसे पिंजरे में कैद कर कानन जू में लाया गया था।

बिलासपुर के कानन पेंडारी जूलॉजिकल पार्क में तेंदुए की मौत हो गई। तेंदुए को तीन दिन पहले वन विभाग ने रेस्क्यू कर पकड़ा था। इस दौरान उसके पेट में गहरा जख्म लगा था। इलाज के अभाव में उसके जख्मों में कीड़े लग गए थे, जिससे इंफेक्शन फैलने से उसकी मौत हो गई।

पांच दिनों से भूखा था तेंदुआ

यह भी कहा जा रहा है कि तेंदुआ शिकार की तलाश में भटकते हुए ग्राम बिनौरी पहुंचा था। वह पांच दिनों से भूखा था। रेस्क्यू करने के बाद भी वह कुछ नहीं खा रहा था। लिहाजा, उसकी स्थिति बिगड़ती चली गई। इधर, उसके जख्मों का भी सही तरीके से इलाज नहीं हो सका।

जख्म में कीड़े लग गए थे

कानन पेंडारी जूलॉजिकल पार्क में रविवार को तेंदुए की मौत से प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर फिर से सवाल उठने लगा है। हालांकि, वन विभाग के अफसरों का कहना है कि तेंदुए को जब रेस्क्यू किया गया था, तब वह घायल हो गया था। उसके जख्मों का उपचार चल रहा था। लेकिन, कीड़े लगने और इंफेक्शन फैलने से उसकी मौत हो गई।

रेस्क्यू से पहले घायल हो गया था तेंदुआ

तेंदुए की मौत के बाद कानन प्रबंधन अपनी बचाव में आ गया है। अफसरों का कहना है कि उनकी टीम में जब तेंदुए का रेस्क्यू किया, इससे पहले ही उसके शरीर पर गहरे जख्म थे और वह घायल स्थिति में था। यह भी आशंका जताई जा रही है कि तेंदुए का शिकार करने के लिए फंदा लगाया गया था, जिससे वह घायल हो गया था। उसके शरीर में फंदा भी फंसा हुआ था।

नहीं थम रहा वन्य प्राणियों की मौत का सिलसिला

कानन पेंडारी जूलॉजिकल पार्क में जंगली जानवरों की मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। पिछले साल आपसी संघर्ष में शेर की मौत हो गई थी। वहीं, बीमारियों से भालू, दरयायी घोड़ा, बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों की मौत हो चुकी है। वहीं, रेस्क्यू कर लाए गए जंगली जानवरों को भी बचा पाने में कानन पेंडारी नाकाम ही रहा है। इससे पहले भी रेस्क्यू कर लाए गए बाघिन की इलाज के दौरान मौत हो गई थी।

बाघिन के शावक की हो गई थी मौत

कुछ दिनों पहले कानन पेंडारी जूलॉजीकल पार्क में करीब 9 महीने पहले जन्मे बाघिन ‘रंभा’ के नर शावक ‘मितान’ की मौत हो गई। शावक दो दिन से बीमार था और दस्त कर रहा था। उसकी मौत फेलाइन पेन ल्यूकोपेनिया वायरस से होने की बात सामने आई थी।

बीते साल जनवरी से शुरू हुआ था मौत का सिलसिला

साल 2022 में जनवरी का महीना बीतने के बाद कानन जू में हर महीने वन्य प्राणियों की मौत हो रही थी। बाघिन रजनी और चेरी के बाद लायनेस मौसमी की अप्रैल में मौत हो गई थी। इस ढाई महीने में कानन जू में 9 वन्यप्राणियों की मौत से वन प्रबंधन सकते में आ गया था। 12 फरवरी को सुबह 4 साल की मादा हिप्पोपोटामस सहेली की मौत हुई थी। दूसरी तरफ 266 दिन तक इलाज के बाद मादा बाघिन रजनी ने 3 मार्च को दम तोड़ दिया था। 18 अप्रैल की शाम को लायनेस मौसमी की डिलीवरी के दौरान मौत हो गई थी।

कै-नाइन हैपेटाइटिस से तीन भालूओं की हुई थी मौत

26 फरवरी को भालू कुश की मौत हुई। उसका बिसरा जांच के लिए बरेली सहित अन्य स्थानों पर भेजा गया। उसके ठीक 12 दिन बाद 10 मार्च को उसी हालत में भालू कन्हैया की मौत हो गई। इसके बाद जू प्रबंधन ने वन्य प्राणी विशेषज्ञों से संपर्क किया था, तब कै-नाइन हेपेटाइटिस का संक्रमण होने की आशंका जताई गई थी। इस बीच तीसरी मादा भालू कविता भी संक्रमित हो गई और 25 मार्च को उसकी मौत हो गई।

गेट का कूंदा तोड़कर बाघ भैरव ने बाघिन को मारा

4 अप्रैल की सुबह बाघ भैरव और बाघिन चेरी के केज में घुस गया था। वहीं, चेरी केज में खून से क्षत-विक्षत पड़ी थी और उसकी मौत हो गई थी। बताया गया कि बाघ भैरव ने स्लाइडर केज का कूंदा तोड़कर बाघिन चेरी पर हमला कर उसे मार दिया था।

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