लेखक की कलम से
लौट आओ
तुम्हारे अँदर एक समुद्र है
तुम उस समुद्र में लौट आओ ।
यह शहर कितना उदास , कितना सूना
तुम्हारा मन कितना उचाट , असम्पृक्त
अनकते स्पर्शों का वह नीला – झीना मधुरिम रंग
नील – नील में समाहित सम्मोहित
शाश्वत द्वार चिर – प्रतीक्षित ….
गोधूलि से पहले कहीं बिखर न जाओ
तुम लौट आओ ।