लेखक की कलम से

लौट आओ

तुम्हारे अँदर एक समुद्र है

तुम उस समुद्र में लौट आओ ।

यह शहर कितना उदास , कितना सूना

तुम्हारा मन कितना उचाट , असम्पृक्त

अनकते स्पर्शों का वह नीला – झीना मधुरिम रंग

नील – नील में समाहित सम्मोहित

शाश्वत द्वार चिर – प्रतीक्षित ….

गोधूलि से पहले कहीं बिखर न जाओ

तुम लौट आओ ।

©डॉ. मुक्ता, वाराणसी

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