लेखक की कलम से

और तुम ऐसे चले गए…

 

कितनी बातें रही अधूरी

कितने बाकी काम ज़रूरी

और तुम ऐसे चले गए

 

बन्द हुए पलकों में सपने

रोते घुटते रह गए अपने

और तुम ऐसे चले गए

 

बिखरे भरे फूल के दोने

अभी थे बाकी फूल पिरोने

और तुम ऐसे चले गए

 

कितना हमने हाथ बढ़ाया

दिल चीखा रोया चिल्लाया

और तुम ऐसे चले गए

 

तरस ज़रा न तुमको आया

मौत को हंस के गले लगाया

और तुम ऐसे चले गए

 

मण्डप की वो वेदी बाकी

माथे का वो सेहरा बाकी

और तुम ऐसे चले गए

 

ना रार करी ना कुछ बोला

पटका खुशियों का झोला

और तुम ऐसे चले गए।

©सविता गर्ग “सावी” पंचकूला, हरियाणा

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