कल हो न हो …
आखरी या दुहराना
ये ख़्याल करना
सबका चलो आज ख़ुद भी करते हैं
सबकी खुशी के साथ हमारी खुशी को दोगुना करते हैं
जो कभी ममरूफियत में हम भूलते हैं
अब वक्त जाया नहीं करते है
चलो आज मां बाबा है रिश्ते को
जादू की झप्पी वाला एहसास से बता देते है
क्या पता कल हो ना हो
हम अपने गुणों में एक और बाज़ी जीत की लिखवा लेते है
ये पुष्टेनी नाराज़गी जो दिलों में जमी काई सी फफूदी लगा लेते हैं
ज़रा सी जीवन में कुछ खुशी के पलों में ज़िन्दगी क्यूं नही जी लेते हैं
पर हा ताली दो हाथों से ही बजती हैं
क्या पता कल हो ना हो
सिर्फ हमारी कोशिश से नहीं सबकी कोशिश से ही ये generation gap वाली बातें खत्म हो सकती हैं
ये बड़ो के मलाल में बच्चों के रिश्तों को क्यूं हलाल किया जाता है
अब emotional card का उपयोग बाखूबी किया जाता हैं
खैर छोड़िए आज क्यूं ना हम सब कुछ नेक काम कर लेते है
क्या पता कल हो ना हो
हम सब अपने कर्म के बैक अकाउंट में खुशी प्यार की दौलत अपने नाम लिख लेते हैं
जो दिल थक गए रिश्तों को निभाते निभाते एक जोर से कोशिश वाला धक्का लगा लेते है
क्या एक दूसरे की ज़िंदगी में नमक मिर्च ना लगा कर कुछ प्यार भरे तारीखें ऐसे तलाश लेते हैं
क्या पता कल हो ना हो
ये मलाल भूल कर तुमने क्या किए सिला दिया क्या क्या रह गया क्या खोया क्या पाया इन सवालों से दूर खुद को कर लेते हैं
इन आंखों में जो बचपन के सपने और अपनो का साथ था क्या फिर से नहीं जी लेते हैं
हारी हुई बाज़ी जो लगाई है आज क्या उसमें आप मेरे साथ शामिल हो लेते हैं?
क्या पता कल हो ना हो
कर पाएंगे या हार या जीत दर्ज करवाएंगे ये छोड़ कर बस एक बार फिर दिल खोल लेते हैं
पर जो ज़िम्मेदारियां में ख़ुद को खर्च कर चुके थोड़ा सा और खर्च कर लेते है
ताकि हम ये न कहे हम बिना कोशिश के हार मान लेते हैं
मुश्किल है नामुमकिन नहीं ये भी कह देते है
क्या पता कल हो ना हो
जिन रिश्तों में जाले लग गए है थोड़ा सा रुक कर साफ कर लेते है
उम्मीद के पर्वत ढह गए हैं थोड़ा पानी डाल कर कही जो बीज गिरे है अंकुर निकल आए कुछ प्यार से एक फुवारा चला लेते हैं
क्या पता कल हो ना हो?
हर हाल में जीवन को प्रभावित कर लेते है
एक आखिरी कोशिश हम अपनी तरफ़ से कर लेते है
याद दिला देते है हम छोटे होकर बड़े नही बनना चाहते हैं
बस रिसते हुए रिश्तों को थोड़ा रोकना चाहते हैं
इसमें कोई मतलब या इस्तेमाल मत सोच लेना
बस बचा हुआ छोटा सा सपना जो बचपन में साथ देख लेते थे
फिर से उसी उड़ान भरने की कोशिश कर लेते है
क्या पता कल हो ना हो
क्या कहते हो गलत है या सही
सही होकर गलत, गलत होकर सही
ये इंसान का दिल डील क्यूं करने लग जाता है
अब अपने सब बड़ो को ये बात समझाना है
हम छोटे होकर बड़े चम्मच में भी एक साथ खाना खिलाना है
क्या पता कल हो ना हो
ये जानते हो या उसने क्या किया, अब हमारी बराई हो गई
हर बार यही सब ताउम्र दोहराना है ?
बस करो ना आज तो रिश्ते भी इतने नहीं रह गया किसी की बुआ है तो किसी की मासी नही किसी का मामा है तो किसी का ताया नही किसी का चाचा हैं तो किसी का काका नही
बस ये समझिए जितने ज्यादा Advance हो रहे है
उतने व्यस्त होकर सीमित होते जा रहे हैं
क्या पता कल हो ना हो
यही सोच कर हम सब एक छोटी सी कोशिश और करते लेते हैं
बंद पड़े दिल के दरवाज़े को थोड़ा सा खोल लेते हैं
अच्छा आदमी था यही सुनने के इंसान के। जाने का इंतजार क्यू कर लेते है
जीते जी उसके सामने ही बता देते है
Communication gap से जो थोड़ा ठीक हो सकता है ना उसको भी दिल के सवाल और खुद जवाब खोज कर बड़ा बना लेते हैं
यहीं बात पर बात बढ़ती जाती है और दरारें गहरी होने लगती है
अब इन दरारों को थोड़ा सा भर लेते है
क्या पता कल हो ना हो
एक बार छोटी सी कोशिश कर लेते है
माफ़ कीजिए छोटा मुंह बड़ी बात नहीं पर कह लेते हैं
बड़ों के लिए तो हम छोटे ही तो है
अपनी ego और गुस्से को ज़रा भूल कर प्रेम से नई शुरुवात कर लेते है
कही गुजाइश हो तो हम छोटों की इल्तज़ा का मान बड़े भी तो रख सकते हैं
क्या पता कल हो ना हो
©हर्षिता दावर, नई दिल्ली