याद में तेरी मुझे तड़पना ही पड़ा …
याद में तेरी मुझे, तड़पना ही पड़ा,
अश्क आंखों में थे, फिर भी मुस्कुराना ही पड़ा,
जीते मरते थे कभी एक दूजे के लिए हम,
बिन तेरे युं ही मुझे, तन्हाई में जीना ही पड़ा।।
सजाए थे कितने अरमां मैंने तेरे लिए,
दिल की बात दिल में युं ही, दबाना ही पड़ा,
एक भी दिन तेरे बिन गुजरते थे नहीं कभी,
गम के दरिया में खुद को डूबोना ही पड़ा।।
मैंने न जाना था मुकद्दर में यही लिखा था,
दीप सा जल-जल कर, मुझे बुझना ही पड़ा,
सूखे फूलों को जो किताबों में रखे थे मैंने,
गम के तूफां में उसे उड़ाना ही पड़ा।।
खत जो लिखे थे कभी मैंने तेरे ही लिए ,
जलते दिल के चूल्हे में जलाना ही पड़ा,
एक आहट से कभी चौंक जाते थे हम,
ताउम्र उन राहों से मुख मोड़ना ही पड़ा।।
संवारती थी खुद को कभी तेरे लिए,
हर रंगीनियों से आंख फेरना ही पड़ा,
निहारती थी खुद को पल-पल जिस दर्पण में,
गम की आंधी में उसे टूटना ही पड़ा ।।
©पूनम सिंह, नोएडा, उत्तरप्रदेश