लेखक की कलम से

सफर …

 

कैसे तुम उठाए फिरते हो

“नफरतों का टोकरा ” सिर पर ..

कैसे दम नहीं फूलता तुम्हारा ?

कैसे विक्षिप्त नहीं होते ,

और ये भी ! कि,

थक नहीं जाते तुम ?

मुझसे मत पूछ लेना

मेरी मुस्कुराहट का राज़

मत पूछ लेना,

नई उमंगों से भरे होने का “मंत्र”!

तुम देखो,

जो मेरे सिर पर गट्ठर है न ..

फूला-फूला सा ……

वो मेरा प्रेम है सबके लिए

बाँटती जाती हूँ ,जो भी मिले ,

कम नहीं होता ……

बढ़ता ही जाता है

तब भी “बोझ” नहीं लगता !

सुना और देखा भी है,

जो बाँटोगे, वही मिलेगा

चलो उतार फेंको अपना बोझ

और चलते रहो

हाथ पकड़कर मेरा

सफर आसान रहेगा।।

 

©मीना शर्मा, खंडवा, मध्यप्रदेश

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