लेखक की कलम से

शबनमी सुबह मुबारक

 

मन जिसका मजबूत होता, तन की परवाह नहीं करते

बिखर-बिखर कर निखरा करते

झंझावातों से कभी न डरा करते

पकड़कर साहस की डोरी शिखरों पर चढ़ा करते!

 

बैठी शबनम दूब पर किरणों को गले लगाये

आते-जाते राहगीरों को चमक-चमक लुभाये

शीतलता से धरती सींचे-सींचे फल और फूल

हाय निगोड़ी अंखियां मोरी

देख-देख तरसाय!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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