लेखक की कलम से

स्वर्ग लोक से लौट आओ …

रात अकेली बैठी छत पर

तुझे मैं ढूँढा करती, लाखों तारों में

छिप जाती माँ खेले हमसे आँख मिचौली

छोटी भी तेरी याद में दिनभर अश्रु बहाये

माँ तुझे नन्ही परी पर तनिक तरस ना आये

हमको मझधार में छोड़ अकेला तू स्वप्न

लोक में रहती

हम पुकारे तुमको माँ

तू परियों के देश में जा बैठी

तेरी नन्ही कोमल कलियाँ

तेरी याद में गई मुरझाते

ओ परियों की शहजादी

हमें माँ दे दो लौटाये

जादूनगरी में जा बैठी हो तुम काहे

माँ इस बार आ जाओ

तुम्हें कभी ना फिर हम सतायेगे………

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा                         

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