लेखक की कलम से
अँधेरे के लिए कोई जगह न रहेगी…..
जब मेरी चेतना विस्तार करेगी
अनुभवों की इस पर बरसात पड़ेगी
ब्रह्मांड के साथ घुलमिल कर
हवाओं के साथ यह बातें करेगी
जब मेरी चेतना …..
फूल – पत्तियों संग यह मिलकर
धरा पर मुहब्बत का पैगाम लिखेगी
जब मेरी चेतना …..
नदी किनारे होकर गुमसुम
महासागर से यह जाकर मिलेगी
जब मेरी चेतना …..
रोशनी ही रोशनी होगी चारों ओर
अँधेरे के लिए कोई जगह न रहेगी
जब मेरी चेतना विस्तार करेगी
अनुभवों की इस पर बरसात पड़ेगी…
©उर्मिल शर्मा (कनाडा)