लेखक की कलम से
खुशी दे रहा हूँ …
तुम्हें अपनी हर इक ख़ुशी दे रहा हूँ
किताबें जो अपनी सभी दे रहा हूँ
हरीफ़ों को तालीम इंसानियत की
शरीफ़ों को आवारगी दे रहा हूँ
बहुत ख़ुश्क होने लगे मेरे आरिज़
इन्हें आँसुओं की नमी दे रहा हूँ
हसीं चाँद को अपनी मुट्टी में भर के
उसे बेवजह तीरगी दे रहा हूँ
नहीं वक्त मेरे लिए पास उसके
जिसे तोहफ़े में घड़ी दे रहा हूँ
“सहर” शम्अ को आज अपनी बुझाकर
पतंगे को मैं ज़िन्दगी दे रहा हूँ
©ऋचा चौधरी, भोपाल, मध्यप्रदेश