लेखक की कलम से
हे भद्र पुरुष …
जिसको बड़े बाजार में मारा चांटा
हे भद्र पुरुष !
वह किसी के बाप होंगे
नाले की कीचड़ से लथपथ कपड़े
अनजान बीबी ने धोए होंगे
गिरे पड़े प्याज-टमाटर को समेटते हुए
वह लाख बहाने सोचे होंगे
बच्चे टॉफी के लिए रूठे होंगे
किसी को न बताकर भी
वह असहाय बाप
रात अंधेरे में रोए होंगे…
© मोर्जुम लोयी, सहायक प्राध्यापक, बिनीयांगा कॉलेज लेखी, अरुणाचल प्रदेश