लेखक की कलम से
रिक्तता …
किसी भी
रिक्तता, खालीपन, शून्यता
की भरपाई क्या कोई कर सकता?
शायद नहीं ……
पांच, दस, पंद्रह या समग्र जगत भी नहीं …….
शून्यता सशक्त होता है!
एहसास हुआ….
उसकी उपस्थिति ना चाहते हुए
भी गुंजित हो जाती…..
जन-जन के ह्रदय तक ही नहीं
प्राण तक को भी
शब्दमान कर देता…..
जिस तरह
रिक्त स्थान की पूर्ति
सटीक या सार्थक शब्द से ही होता!
उसी तरह,
जीवन क्रम में भी
वांछनीय व्यक्तित्व ही
वांछनीय रिक्तता की संपूर्ति
कर सकता है!
उसके अभाव में
सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा रहता
रिक्तता
रिक्त ही रह जाता है!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता