लेखक की कलम से

प्यारी ‘क’

तुम जब हँसती हो तो अपने होठों को कुछ ऐसे दबा लेती हो जैसे दवा की शीशी पर रबड़ का कोई ढक्कन। तुम्हारा एक हाथ हमेशा तुम्हारे बालों की एक लट पर ऐसे झूलता है जैसे मेहमानों के आने पर किसी के घर का सरसराता परदा।

 

‘क’ मैंने एक दिन तुमसे कहना चाहा था कि “तुम मुझे अपनी तमाम बेढ़ंगी हरकतों के बाद भी उतनी ही प्यारी लगती हो जितना कि स्कूल में अपना पहला क़दम रखता हुआ एक छोटा बच्चा पर  मैंने  ऐसा कुछ नहीं कहा क्योंकि मुझे पता था कि अगर मैंने ऐसा कुछ कहा तो तुम शायद ख़ुद को सही मानकर पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं दोगी पर मैं फिर भी तुमसे कहना चाहती थी कि “तुम मुझे अपने हर अदा में  ईमानदार दिखती हो और अपनी इसी ईमानदारी पर हमेशा चलती रहना चाहे कोई कुछ भी कहे।”

एक दिन मैंने तुम्हें दीवार के पीछे किसी लड़के से बात करते हुए देखा था पर तुम मुझे देखते ही  भाग गई थी। इसके बाद मैंने तुम्हें बहुत कुछ कहा था। मुझे उस समय.बस तुम्हारे, वहाँ से भागने पर ऐतराज था, किसी लड़के से बात करने पर नहीं पर तुमने पता नहीं क्या सोचा? कुछ ही देर बाद तुम मेरे पास लौट आई थी और मुझसे कहा था कि ” मैम आप मेरी फेवरेट हो” 

“क्यों” मैं उसका दिया मक्खन हजम नहीं कर पा रही थी। 

“क्योंकि आप सच बोलती हो” वह मुस्कुरा दी

 

“मैं तो तुम्हें बहुत डाँटतीं हूँ” मैंने हँसकर कहा

 

“पर आप जो कहती हो सामने कहती हो बाकी  पीछे से मजाक उड़ाते हैं, इसलिए आप मेरी फेवरेट हो”

यह कहकर वह  आदतन अपने होंठों को दबाकर हँस दी और एक बार फिर उसका हाथ उसके बालों की लट पर झूलने लगा था।

©ऋतु त्यागी, मेरठ, उत्तर प्रदेश

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