लेखक की कलम से

कितने बदल गए हम …

 

आज देखो कितने बदल गए हम…

अब अपने दुःख-दर्द छिपा दिखावटी मुस्कुराहट में

अब छले से जा रहे हैं अपने ही गुरुर के मयखाने में

तब उम्र बीत जाया करती थी, सब के काम आने में

अब देखो तो लगता है अकेले जीवन के शराबखाने में।

 

आज देखो कितने बदल गए हम..

तब रहा करते थे मिलजुल के परिवारों में

अब तो घुमा करते हैं घमंड के मयखाने में

अब क्या बतायूँ बदल दिया हमने सब दस्तावेजों में

अब भूगोल ही क्या से क्या कर दिया परिवारों में।

 

आज देखो कितने बदल गए हम…

अब तुम तो देखो उलझ कर रह गए कागजों में

अब तो बस ख्वाहिश हैं ज्यादा पैसा ही कमाने में

अब मैं भी लग गई बस रोज टी वी के सीरियलों में

अब तो बर्बाद करना शुरू किया समय फालतू बातों में।

 

आज देखो कितने बदल गए हम…

आंखों में शर्मोहया के पर्दे अब उतरें हैं

न जाने क्यों अब अपने लिए ही बस जीते हैं

वो दौर अपना सा था जब जीते थे हम सवके लिए

अब तो अपने लिए ही सब दिखता हैं।

 

आज देखो कितने बदल गए हम…

अब आसान नही जिंदगी का सफर अकेले में

अब दिन सारा गुजर जाता है आपसी तकरारों में

अब तो उलझा है हरेक अपने ही दुख के आँधी तूफानों में

अब तो बदल ही गए हैं अपने ही बस लालच में।

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                            

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