लेखक की कलम से

एक फूल …

कलियां जन्म लेती

अंधड़-तूफानों को सहती,

तप्त धरा से आंखें मिलाती,

बारिश की बूंदों में झिलमिलाती,

शीत की प्रचंडता में मुस्कुराती,

दो-दो हाथ कर, कुछ कह जाती।

वह कली ही फूल बन पाती,

जीवन पथ में नाम कमाती,

जो न संकटों में मुरझातीं,

बाधाओं में पथ दिखातीं…

पुष्पित व पल्लवित हो जाती,

सौंदर्य,सौरभ से मधु-वसुधा महकाती!

 

जन्म चाहे ले,

बाग-बगीचे,क्यारियों में

या पुलों पर,रास्तों पर या गलियों के कोने में,

चाहे जन्म ले उपवनों में या महलों और कुटुंबों में,

छतों या कंकडीरी पथों पर

जहां भी हो खिलती,अनुपम छटा बिखेरती,आकृष्ट करती!

काव्य-पक्ष को जागृत कर जाती,

भाव-पक्ष को प्रबल बनाती!

समग्र ताकत सह पंखुड़ियों को खोलती,

गुणों से जग को अवगत कराती,

सौरव-सीख कुछ कह कर जाती!

 

हे मानव!

बस तुम एक फूल!

स्थान,काल,परिस्थिति,परिवेश से

ना डरो!

बस एक फूल बनो!

सामर्थ भर सुरभित करो जग को!

आभामंडित करो मधुबन को!

बस एक फूल बनो!

अनुपम स्वयं सिद्ध करो,

नभ तक को!

एक फूल बनो!

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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