लेखक की कलम से

दाग …

 

लड़की प्यारी है, बड़ी न्यारी है

बड़ी सुशील भी और दुलारी है..

 

जी कुछ काम-धाम भी करती है..?

जी, बड़ी होनहार भी है

अच्छे अच्छे पकवान बनाती

घर को बड़े जतन से सजाती…

 

अजी संस्कार भी कुछ पाए हैं…?

हां, लड़की बड़ी मासूम सी है,

मासूमियत सबको भाती है

देवी की मूरत है वो,

अपने गुणों से अपना बनाती है…

 

जी ये सब तो ठीक है….

पर क्या गाना भी गा लेती है…?

कोयल सी आवाज है उसकी,

मीठी बोली मन लुभाए सबकी

वो मुस्काए तो घर में खुशहाली आए,

उसके रोने से दिल सबका बैठ जाए

 

जी बहुत हो गई बातें- वातें,

लड़की से कर लें मुलाकातें..

अच्छी सी महुरत निकलवाते…..?

देखो जी यह लड़की आई,

सबकी नजरें उसपर छाई…

 

ठीक-ठाक तो लंबी है न.?

सांवली न चलेगी, गोरी है न.?

कोई कहे ‘जरा  चल के दिखाओ’

कोई कहे ‘ जरा गाना गाओ’,

‘जरा तुम भी हंसकर बोलो’

अरे, मत शरमाओ, घूंघट तो खोलो…

 

जैसे ही घूंघट उसने खोले

देखनेवाले मिलकर बोले

‘चेहरे पर तो इसके दाग हैं..!’,

‘फूटे लड़की के भाग हैं’..

हम न करेंगे यहां शादी-वादी,

ये शादी नहीं होगी बर्बादी।

अजी, दुनियां को भी मुंह दिखाना है,

किसी कंचन काया को वधु बनाना है।

 

गुण पर रुप भारी पड़ गई,

एक बेटी दुनिया की आंखों में गड़ गई।

ये दुनिया की कैसी सोच है?,

विरोध करने से संकोच है..

 

 

©वर्षा महानन्दा, बरगढ़, ओडिशा           

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