बिलासपुर

रामजन्म भूमि आंदोलन की यादें शहर और गांवों में आज भी जिंदा है. . .

मुंगेली {मनोज अग्रवाल} । रामजन्म भूमि का फैसला अब आ चुका है और अब इस विवाद का पटाक्षेप हो चुका है। राम मंदिर के लिए 1990 में एक बड़ा आंदोलन विश्व हिंदू परिषद और अन्य सहयोगी संगठनों ने किया। इस आंदोलन से पहले काफी समय से तैयारी की गई। गांव-गांव में लोगों को जागरूक किया गया। संगठन से जोड़ा गया। इसके बाद राम मंदिर आंदोलन शुरू हुआ।

अयोध्या में कारसेवकों की भीड़

कारसेवा के लिए 25 अक्टूबर 1990 को मुंगेली के 35 लोगों का एक ग्रुप भी अयोध्या के लिए रवाना हुआ थ। इस ग्रुप में गिरिश शुक्ला, शंकर जायसवाल, सुनील गुप्ता, मोहन भोजवानी, होरीलाल गोयल, बिसाहू पटेल, केदार सिंह, नरपुंगव सिंह, मानस प्रताप सिंह, कुंजबिहारी केशरवानी तथा ग्रामीण क्षेत्र से अनेक कार्यकर्ता शामिल रहे। कारसेवा हेतु ये लोग बिलासपुर से सतना तक ट्रेन से गये।

सतना में मुंगेली के रहने वाले मोहम्मद हुसैन पुलिस विभाग में डीएसपी के रूप में पदस्थ थे। जैसे ही मो. हुसैन को पता लगा कि कारसेवकों की भीड़ में मुंगेली के लोग भी हैं उसने तत्काल संपर्क किया और पूरे ग्रुप के आराम की व्यवस्था तथा काफी आवभगत किया। इसके बाद यह ग्रुप बस से मध्यप्रदेश- उत्तरप्रदेश बार्डर चाकघाट तक पहुंचा। यहां बार्डर पर पुलिस की कड़ी चैकसी थी। बार्डर क्रॉस करते ही सबको गिरफ्तार करके ट्रक में बिठाकर इलाहाबाद नैनी स्थित स्कूल में बनाए गए एक अस्थायी जेल में रखा गया। इस अस्थायी जेल में बड़ी संख्या में लोग थे। स्कूल की बाउंड्रीवॉल कमजोर थी। सब कारसेवकों ने जय श्रीराम का नारा लगाते हुए धक्का मार-मार कर दीवार को ढहा दिया और भाग निकले। दीवार तोड़ते समय वहां तैनात पुलिस वालों का भी सहयोग मिला और सभी पुलिस वाले मुंह फेरकर खड़े हो गए थे।

पूरे शहर में कर्फ्यू लगा था। पूरा ग्रुप जैसे तैसे, दिनभर छिपे रहे। रात में वहां से प्रयागराज के लिए पैदल चले। पूरा ग्रुप 5 दिन तक गांवों के बाहरी पगडंडी वाले रास्तों में चला। कारसेवकों के लिए जाते समय रास्ते भर गांव-गांव में लोगों ने स्वागत किया। 24 घंटे चल रहे भंडारे में खीर-पूरी खिलाई। हर जगह गांव वाले इतना सहयोग कर रहे थे कि कारसेवक रास्ता न भटके इसके लिए रास्ते के पेड़ों में अयोध्या जाने के रास्ते को दर्शाने वाले संकेतक लगे हुए थे। रास्ते में अनेक जगह के कारसवकों के जत्थे मिले। सभी कारसेवकों में बस एक ही जुनून बस एक ही लक्ष्य था। सब किसी भी परिस्थिति में अयोध्या पहुंचना चाहते थे।

गिरीश शुक्ला ने बताया कि उत्तरप्रदेश के एक गांव तिवारी पुरवा में जब हमारा ग्रुप पहुंचा तो वहां एक घर में शादी थी। हम लोग भी वहां पहुंच गए। मगर पुलिस के भय से लोगों ने वहां से जाने को कह दिया। हम लोग निकलकर थोड़ी दूर पहुंचे थे कि गांव की अनेक महिलाओं ने हमें रोका और गांव के बाहर अमराई में रात बिताने को कहा। महिलाओं ने वहीं पर पूरी तैयारी कर भोजन बनाकर हम सबको खिलाया और हमें सुलाने के बाद कई महिलाएं दुनाली बंदूक लेकर रातभर पहरा देतीं रहीं।

 इसी प्रकार हैदरगंज के ग्रामीण इलाके में एक मुस्लिम थानेदार ने ग्रुप को रोक लिया। पूछताछ की और पास के गांव के दो ट्रैक्टर ट्रॉली वालों का बुलाकर अपने थाना सीमा तक सबको छोड़कर आने का निर्देश दिया।

ऐसे हृदयस्पर्शी अनुभवों के साथ 29 अक्टूबर को ग्रुप जब अयोध्या पहुंचे तो वहां केवल पुलिस और कारसेवक ही नजर आ रहे थे। लोग जन्मभूमि की ओर बढ़ना चाह रहे थे। इन्हें रोकने के लिए हर तरफ बेरिकेड्स लगाए गए थे। ग्रुप के लोगों को कारसेवा में शामिल होने तथा दूर से रामलला के दर्शन करने को मिल गया। पुलिस ने कारसेवा करने से सबको कड़ाई से रोक दिया था। जिससे कारसेवक बेकाबू हो गए। गोली चलने लगी। अनेक कारसेवक घायल हो गए। कारसेवक इधर-उधर छिप गए। 1 नवंबर को  विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने कारसेवकों को वापस लौटने को कहा। उसके बाद 2 नवंबर को अयोध्या से वापस निकले और 4 नवबर को मुंगेली वापस आए।

मुंगेली वापस आने पर सभी कारसेवकों का नगर में अनेक जगहों पर बैंड-बाजों के साथ भव्य स्वागत किया गया। तत्कालीन खाद्यमंत्री मूलचंद खंडेलवाल मुंगेली पहुंचकर स्वागत कार्यक्रम में शामिल हुए थे।

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