प्रणेता साहित्य संस्थान द्वारा आनलाइन पुस्तक लोकार्पण आयोजन और काव्य गोष्ठी …
बेंगलुरु। प्रणेता साहित्य संस्थान द्वारा 16 मई को वरिष्ठ साहित्यकार पुष्पा शर्मा कुसुम की पुस्तक ‘भागवत सार’ का आनलाइन लोकार्पण हुआ। साहित्य को समर्पित प्रतिष्ठित अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी की अध्यक्षता में यह आयोजन संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध कवयित्री ममता किरण, अति विशिष्ट अतिथि के रूप में बाबूलाल शर्मा ‘बौहरा’ विज्ञ, विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ राष्ट्रीय कवि राजेन्द्र निगम ‘राज’ ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दी। प्रतिष्ठित कवयित्री सुषमा भण्डारी ने दीप प्रज्वलन किया और वरिष्ठ कवयित्री इन्दु ‘राज’ निगम ने चिर परिचित मुस्कान से सुमधुर सरस्वती वंदना ‘लेखनी पर कृपा तुम हमारी करो
शारदे माँ तुम्हारा सहारा हमें ‘ की भावभीनी प्रस्तुति से मंच को रससिक्त कर दिया।
प्रणेता साहित्य संस्थान के संस्थापक और महासचिव तथा वरिष्ठ कहानीकार और उपन्यासकार एस एस सिसोदिया ने प्रणेता की उपलब्धियों का श्रेय मंच से जुड़े साहित्यकारों की सकारात्मक सक्रियता को देते हुए ‘भागवत सार’ को आज के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण और संदेशपरक बताते हुए लेखिका पुष्पा शर्मा कुसुम को बधाई दी और अगले वर्ष तक एक अन्य पुस्तक के आने की कामना व्यक्त करते हुए शुभकामनाएँ समर्पित की। विशिष्ट अतिथि और छंदविज्ञ साहित्यकार बाबूलाल शर्मा ‘बौहरा’ विज्ञ ने पुस्तक के दोहों को सरसता और शिल्प दोनों कसौटियों पर प्रशंसनीय बताते हुए लेखिका को बधाई दी।विशिष्ट अतिथि राजेंन्द्र निगम “राज” ने ‘भागवत सार’ की उत्कृष्टता को नमन करते हुए लेखिका को आज के श्रद्धेय व्यास की उपाधि से विभूषित करते हुए शुभकामनाएँ दी और कुछ दोहों को पढ़ कर प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि ममता किरण ने चुनिंदा दोहों को प्रस्तुत करते हुए पुस्तक को भावी पीढ़ी के लिए मूल्यवान बताया। अध्यक्ष के पद पर आसीन अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने इसे भाव और शिल्प का अद्भुत संयोजन कहा। सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की धरोहर को और भक्ति काल की धारा को समृद्ध करती सत्य को स्थापित करती हुई पुस्तक बताया ।प्रथम सत्र का संचालन कर रही शकुंतला मित्तल ने भागवत सार लेखन को समुद्र मंथन से निकले अमृत के समान बताते हुए पुष्पा शर्मा कुसुम के स्तुत्य प्रयास की सराहना की। श्वेतांशु प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक के लिए अपने उद्गार व्यक्त करते हुए प्रकाशक संजय कुमार ने कहा कि लेखिका ने भाव के रूप में जिस अनमोल मोती को उन्हे दिया,उसे उन्होंने पूर्ण निष्ठा और समर्पण से पुस्तक रूप में प्रकाशित किया। सुप्रसिद्ध कवयित्री इन्दु निगम ‘राज’ ने भी पुस्तक के दोहों को सुमधुर स्वर में प्रस्तुत करते हुए पुष्पा शर्मा कुसुम को बधाई दी। अंत में लेखिका ने बताया कि भागवत कथा श्रवण के संस्कार उन्हें अपने पिता से विरासत में बचपन से ही मिले थे, जिसने उनके हृदय को गहराई से प्रभावित किया और एक हजार आठ दोहों के रूप में ‘भागवत सार’ पुस्तक का सृजन हुआ।
आयोजन के द्वितीय चरण में काव्य गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार भावना शुक्ल ने किया। अनेक राज्यों से जुड़े साहित्यकारों की शानदार काव्य प्रस्तुतियों से मंच झूम उठा।
कुछ अंश इस प्रकार रहे।
‘सुबह सवेरे आपके दोहे
सारे के सारे मन को मोहे’
कविता हो या वो हो गद्य
दोहे,छन्द या किसी प्रकार का पद्य
सारगर्भित लिखती हैं
दिल मेरे को छू जाती हैं।
चन्नी वालिया
आज हम सब एक गर हो जाएंगे
ज़िंदगी को राह पर ले आएंगे
इन्दु”राज”निगम
गुरुग्राम
खुदकुशी भूल के वो सोचे शहादत की बात
मरना चाहे है तो मरने का सलीका सीखे
( लक्ष्मी शंकर वाजपेयी )
इस दौर में सभी से न खुलकर मिला करो
झूठे फरेबी लोगों से बचकर रहा करो
( ममता किरण )
गीत की पंक्तियाँ-
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“आखिरी साँस तलक साथ वो निभाएगा,
दर्द ने ठान लिया है कि नहीं जाएगा”
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-राजेन्द्र निगम “राज”
गुरुग्राम
मूरत उनकी दिल में बसा लो
इन नैनन में ज्योत जला लो
जग में दूजा कौन है नाम
सुबह शाम सब बोलो राम ।
संतोष कुमारी संप्रीति
हे राधा इस बार अगर
तुम कृष्ण संग जग में आना,
मत जाने देना मोहन को
तुम अपना हक़ जतलाना।
स्वीटी सिंघल ‘सखी’
सभी माँओं को समर्पित
वो माँ की गोद और वो माँ का , ममता से भरा आँचल।।
वो हाथों में भरी चूड़ी , वो आँखों में लगा काजल ।।
न जाने कितने उसके हाथ थे , न जाने कितने पैर ,
लुटाती प्यार सब पर यूँ , बरसता हो कोई बादल।।
अर्चना पांडेय
अब चिराग़ों से सदा रोशन रहे ये ज़िंदगी ,
घर सभी मज़लूम के अब चाँदनी का नूर हो।
चंचल पाहुजा
दिल्ली
तेरे बिना अब सूना-सूना सा शहर लगता है |
यहाँ की आबोहवा में घुला सा जहर लगता है ||
दीपशिखा श्रीवास्तव ‘दीप’
अजब है खेल कुदरत का नहीं कोई समझता है।
कही आँखे तरसती हैं कही सावन बरसता है।।
अंशु
मौन मित्र
हे मेरे मौन मित्र
काश, मैं तुम्हें समझ पाती
तुम साक्षी बने ,मेरे उलझे, सुलझे सवालों के .
सविता स्याल
गुरु ग्राम ।
अब तो कितने अपने छूट गये,
लगता है भगवान भी अब रूठ गये ।
कहाँ जाए, किधर जाए, कैसे अपनों के बचाए ? परिणीता सिन्हा, गुरूग्राम
जीवन के हर मोड़ पर,छले गए सौ बार। माँ की ममता साथ थी,हार गया संसार।। सरिता गुप्ता
जो जीवन में शेष हैं,
करो न उनसे बैर।
भेद भाव सब त्याग कर,
गले लगा लो गैर।।
दया धर्म अब है नहीं,
मरते जीव हजार।
रहम करो कुछ तो प्रभो,
इतनी सुनो पुकार ।।
डॉ भावना शुक्ल
दहशत भरे माहौल में बदले सभी दस्तूर हैं
दर्द से हैं घायल, दूर रहने को मजबूर हैं।
शकुंतला मित्तल
मंच पर 39 साहित्यिक विभूतियों की उपस्थिति ने आयोजन को सफलता के शीर्ष पर पहुँचा दिया। महेश मिश्रा,कृष्ण मुरारी भट्ट,अलका दधीच,मुरलीधर कुशवाहा,लोकेश शर्मा,पायल भट्ट,श्री विश्वंभर भट्ट, डा. अनिल दाधीच,कामना श्रीवास्तव,वरिष्ठ कवयित्री शारदा मित्तल और सरोज गुप्ता श्रोता रूप में उपस्थित रहे।
शकुंतला मित्तल और भावना शुक्ल के कुशल संयोजन और संचालन में पुस्तक विमोचन और काव्य गोष्ठी हर्षोल्लासमय वातावरण में संपन्न हुई। उपाध्यक्ष शकुंतला मित्तल ने सभी अतिथियों,साहित्यकारों और पदाधिकारियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।