इस दीवाली करें मन के डस्टबिन की भी सफाई
* दशहरा बीत जाने के साथ हम अपने घरों में दिवाली की सफाई में लग जाते हैं पर हमारे मन की सफाई का क्या पिछले लेख में मैंने आपसे स्वच्छ मन स्वस्थ तन की बात की थी, कहीं ना कहीं हम अपने मन में छुपी गंदगी अपने ही हाथों निकाल नहीं पाते और अगर लोग हमें उस गंदगी के बारे में बताते हैं तो हमें आती है चिड़चिड़ा हट और गुस्सा।
जैसे ही दिवाली की सफाई शुरू होती है हम सबसे पहले अपने घर के अंदर के सारे सामान बाहर निकाल कर रख देते हैं और एक एक समान जो भी काम का है सुंदर है सही है, अपने घर को साफ करने के बाद रखना शुरू कर देते हैं और कचरा या तो कबाड़ी वाला या कचरे के डस्टबिन में चला जाता है। कभी-कभी यह सफाई पड़ोसी परेशान सफाई बन कर रह जाती है, जब हम कचरा जहां-तहां पड़ोसियों के घर पर बाहर कहीं भी फेंक देते हैं और हमारा पड़ोसी सिर्फ झुंझला कर चिड़चिड़ा कर रह जाता है। उड़ रही धूल किसी को अस्थमा किसी को एलर्जी किसी को कान की तकलीफ किसी को स्किन चर्म रोग की तकलीफ दे जाती है।
उपरोक्त बातों में गंदगी का अर्थ दूसरों के द्वारा फेंके हुए कचरे मतलब उनकी मन की बातें हैं जिसे हमने अपना कर मन में कचरे की तरह भर लिया है। क्या आप इस दिवाली दूसरों के फेंके हुए कचरे को अपने घर रखना चाहेंगे, नहीं ना तो फिर दूसरों के मन की बातें जिसमें वह सिर्फ पीड़ा और दुख या गुस्से की बातें हमें दे देते हैं उसे हम उठा कर मन में क्यों रख लेते हैं क्यों हम अपने मन के डस्टबिन में इन बातों को डाल लेते हैं!। ऊपर लिखा पड़ोसी कोई और नहीं बल्कि हमारे आसपास के हमारे परिवार के ही लोग होते हैं जिनके सामने हम दूसरों से लिया हुआ कचरा उनके पास फैलाते रहते हैं और वह सिर्फ चिड़चिड़ा के रह जाते हैं ।
क्या आपको पता है आपके मन में चल रही कोई भी गंदगी आपको इसी तरह से अस्थमा चर्म रोग या सांस की तकलीफ दे सकती है जब भी हम मन में कोई बात दबा देते हैं हमारा मन या शरीर छाती भारी होने लगता है सांस फूलने लगती है कोई हमें हर्ट कर दें कोई हमें दो बात बुरी कह दे और हम अगर वह बात ना निकाल पाए अंदर रखें तो हमारी सांसे हाव भाव बता देता है कि हमें कोई तकलीफ है।
आज मैं बात कर रहा हूं हमारे मन में दबी उस कचरे का उस मन के डस्टबिन का जिसमें हमने कई सालों से कई कचरो को भर रखा है और अब वह वक्त है जिसे हम इस डस्टबिन को साफ कर स्वच्छ भारत की तरह स्वच्छ मन की कल्पना करें। जरा अपनी पिछली पुरानी बातों को याद करिए अपने मन को टटोलिए और समझने की कोशिश करिए कि हमने कितनी सारी बातें जिनका हमारे भविष्य से या वर्तमान से कोई संबंध नहीं फिर भी अचार या मुरब्बा की तरह पूरी तरह से मन में दबा रखा है और वक्त बेवक्त हमने जब भी वह बातें याद आती है तो गुस्सा या आंसू छलक जाते हैं।
ह्यूमन साइंस भी अब मन से शरीर के संबंध की बात मानने लगा है ज्यादातर सांसो या दिल से रिलेटेड बीमारियों में मन में दबी कई बातें जिससे हमने अपने अंदर छुपा लिया है, जिम्मेदार होते हैं। पुरानी कहावत भी है-
“दिल खोल लिया होता जो यारों के साथ तो ना खोलना होता औजारों के साथ” ।
मन का दीपक जलाएं- इन सब चीजों से बाहर निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता है मन की सफाई। आइए माफ करें और माफी मांगे पुरानी बातों को भूल जाए। नए रिश्तो की शुरुआत करें बहुत मुश्किल नहीं है बस कोशिश करनी होगी। नए सिरे से रिश्तो को समझना होगा। नए सिरे से जिंदगी को समझना होगा। क्या मिलता है पुरानी चीजों को दबाकर रखने से सिर्फ मन और शरीर ही खराब होता है, रिश्ते खराब होते है, आइए हम और आप इस दिवाली अपने मन के डस्टबिन की सफाई करें और अपने घरों और मन को दीए की रोशनी से रोशन करें। कोशिश करें इस दिवाली ना हम अपनी गंदगी से ना ही पटाखों की आवाज से दूसरों को परेशान करेंगे, ,पर्यावरण का ध्यान रखेंगे, किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं फैलाएंगे स्वच्छ भारत की तरह स्वच्छ मन से दीपावली मनाएंगे।
अगले अंक में आपसे फिर मुलाकात होगी एक झूठे आत्म सम्मान की बातों को लेकर तब तक के लिए मन के डस्टबिन को खाली करें और नए अंदाज में सभी मिलकर दीपावली मनाएं. . . आप सभी को दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।