नवयुग के अभिमन्यु …
जागो अब वीर अभिमन्यु चक्रव्यूह हो रहा तैयार।
सत दरवाजे के अंदर है बसहि और कुटीलों का चाल।।
शिक्षा जो अधूरी रहगयीं उसको पहले पूरा करने की दरकार।
सातवें और आखरी दरवाजे अब बिना सहायता बेधने की दरकार।।
लक्ष्य वेध हो सटीक सुगम अब क्योँ करना पार्थ का इंतजार।
तुम जाओ और धरासाई करो दुश्मन को हे वीर पार्थ कुमार।।
आर्यावर्त के तुम हो रक्षक धर्म पताका तुम्हारे साथ।
अधर्मी और नीच को दंडित करना अब
है तुम्हारे हाथ।।
राह पड़े जो अपने तेरे जिसने किया हो गुनाह।
उचित और धर्म संगत तुम कर देना उसका भी हिसाब।
इस धर्म भूमि भारत पर जब जब बढ़ा है अत्याचार।
तुम जैसे ही किसी बालक ने लड़कर मिटाया अत्याचार।।
एक कहानी फिर से लिखना तोड़ कर तुम चक्रव्यूह के द्वार।
एक कहानी फिर जुड़ जाएंगे इतिहास के पन्ने पर आप।।
नाम तुम्हारा फिर गाएंगे इस अभिमन्यु के सालों साल।
चक्रव्यूह वेधने की कला पर फिर न होगा कोई सवाल।।
©कमलेश झा, फरीदाबाद